नींद, करवट, अश्क़, शिकवे और कुछ जज़्बात हैं
कितने नाज़ुक आज की इस रात के हालात हैं
सामने मेरे ही उसका हाथ थामे था रक़ीब
मैं उसी दिन मान बैठा इश्क़ में ये मात हैं
अजनबी इक शख़्स के लग कर गले हम रो पड़े
पूछता वो रह गया "कुछ तो बता, क्या बात हैं"?
पहले लगता था हसीं मौसम हुआ है इश्क़ में
अब ये लगता है कि जैसे हर घड़ी बरसात हैं
बैंड-बाजा और ऊपर से पटाखों का ये शोर
चीर डाले दिल को जो तलवार सी बारात हैं
कोई आए, कोई जाए, फ़र्क अब पड़ता नहीं
दिल लगाने के नहीं अब 'अर्ज़' के हालात हैं
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