Chand Akbarabadi

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@chand-akbarabadi

Chand Akbarabadi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Chand Akbarabadi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
ग़लतियाँ अपनी न हों फिर भी मनाने का हुनर
इतना आसान नहीं ख़ुद को मिटाने का हुनर

यादों के साँपों को क़ाबू में करूँ कैसे मैं
मैं ने सीखा ही नहीं बीन बजाने का हुनर

मेरे चेहरे की हँसी में पता ख़ुशियों का न ढूँढ
मुद्दतों बाद मिला दर्द छुपाने का हुनर

मेरे अपनों ने तराशी मेरी इज़्ज़त की क़मीस
सब को आता है यहाँ क़ैंची चलाने का हुनर

आग चिंगारी धुआँ कुछ न था दिल फिर भी जला
किस ने सिखलाया तुम्हें ऐसे जलाने का हुनर

इतने सपने न दिखा झूटी अदाकारी छोड़
पत्थरों को न सिखा घास उगाने का हुनर

आँखें चेहरा ज़बाँ सब बे-ज़बाँ हो जाते हैं
जान ले लेगा तिरी राज़ छुपाने का हुनर

क़त्ल करना है अगर जलते हुए सूरज को
सीख लो बर्फ़ की शमशीर बनाने का हुनर
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Chand Akbarabadi
ये तसव्वुर का वार झूटा है
ख़्वाब झूटे हैं सार झूटा है

फूल तुम तोड़ लाए शाख़ों से
क्या बहारों से प्यार झूटा है

आँखों में कुछ ज़बान पर कुछ है
तेरा किरदार यार झूटा है

सारी गुस्ताख़ियाँ रहीं क़ाएम
उस पे रुत्बा वक़ार झूटा है

लापता हूँ मैं घर नहीं कोई
चिट्ठी झूटी है तार झूटा है

मौत से तेज़ दौड़ किस की है
उम्र पर शहसवार झूटा है

धूप के शूल बिखरे हैं हर सूँ
चाँदनी का ख़ुमार झूटा है

आँखों में रख हुनर तकल्लुम का
लफ़्ज़ों पर ए'तिबार झूटा है

बार-ए-ख़ातिर है हम को फ़िक्र-ए-ज़ीस्त
हसरतों का मज़ार झूटा है

टूटना आइने की फ़ितरत है
पत्थरों से क़रार झूटा है

'चाँद' कब तक करोगे दिल का यक़ीं
आप का इंतिज़ार झूटा है
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Chand Akbarabadi
तू काश मिले मुझ को अकेली तो बताऊँ
सुलझे मिरी क़िस्मत की पहेली तो बताऊँ

आने से तिरे पहले ख़बर दे दी हवा ने
आँखों पे मिरे रख तू हथेली तो बताऊँ

महके हैं तिरे जिस्म की ख़ुशबू से फ़ज़ाएँ
नाराज़ न हों चम्पा चमेली तो बताऊँ

क्यों तेरे मुक़द्दर में नहीं मेरी मोहब्बत
दिखलाए तू बे-रंग हथेली तो बताऊँ

वीरानियाँ तन्हाइयाँ मौसम है ख़िज़ाँ का
अनवार करो दिल की हवेली तो बताऊँ

चेहरे पे मिरे राज़ टटोला न करो तुम
हमराज़ बने आँख नशीली तो बताऊँ

इज़हार-ए-मोहब्बत की तलब दिल में लिए हूँ
तन्हा जो मिले तेरी सहेली तो बताऊँ

आँखों में तिरी याद कहीं ज़ख़्म न कर दे
निकले ये अगर फाँस नुकीली तो बताऊँ
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Chand Akbarabadi
न पूछ हम से हमारी उड़ान छोड़ न यार
बड़ी तवील है ये दास्तान छोड़ न यार

निकल पड़े जो सफ़र में तो सोचना कैसा
कहाँ है धूप कहाँ साएबान छोड़ न यार

दबी है आग जो दिल में उसे कुरेदो मत
यहीं कहीं था हमारा मकान छोड़ न यार

ये सोच हम को पहुँचना है अपनी मंज़िल तक
न गिन किसी के क़दम के निशान छोड़ न यार

ख़ुशी थी मूल तो ग़म था ब्याज के जैसा
तमाम उम्र भरा है लगान छोड़ न यार

हुआ है ज़िंदगी भर की जुगाड़ रोटी का
बिकी है क़िस्तों में अपनी दुकान छोड़ न यार

लिबास सुन्नती है उम्मती मोहम्मदी हूँ
न पूछ अब ये नसब ख़ानदान छोड़ न यार

ये सब बुलंदियाँ अल्लाह के लिए हैं 'चाँद'
मक़ाम मर्तबा रुत्बा ये शान छोड़ न यार
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Chand Akbarabadi
बाज़ार तिरे शहर के बदनाम बहुत हैं
छोटी सी ख़ुशी के भी यहाँ दाम बहुत हैं

मैं कैसे चलूँ हौसले का हाथ पकड़ कर
इस ज़िंदगी में गर्दिश-ए-अय्याम बहुत हैं

होंटों से बग़ावत की सदा कैसे हो जारी
वाइ'ज़ को हुकूमत से अभी काम बहुत हैं

इस दौर में उम्मीद करूँ अद्ल की कैसे
मुंसिफ़ पे ही जब क़त्ल के इल्ज़ाम बहुत हैं

आग़ोश में और वक़्त के बाक़ी हैं सुख़नवर
'ग़ालिब' भी कई 'मीर' भी 'ख़य्याम' बहुत हैं

ये शहर भी महफ़ूज़ नहीं क़हर-ए-ख़ुदा से
साक़ी भी हैं मय-ख़ाने भी हैं जाम बहुत हैं

वो ज़ात है वाहिद वो ही ख़ालिक़ वो ही राज़िक़
मख़्लूक़ ने पर उस को दिए नाम बहुत हैं

इमदाद-ओ-इबादत में रिया-कारी न हो 'चाँद'
इख़्लास-ए-अमल पर वहाँ इनआ'म बहुत हैं
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Chand Akbarabadi
इक हवा ऐसी चली बगुले भी काले हो गए
चाँद को सर्दी लगी सूरज को छाले हो गए

मज़हबी आतिश ने बचपन की जला दी दोस्ती
हम भी का'बा बन गए तुम भी शिवाले हो गए

हौसला छूने का था बचपन में तुझ को आसमाँ
बरसों तेरी सम्त इक पत्थर उछाले हो गए

हिज्र की दौलत ने माला-माल मुझ को कर दिया
बाल चाँदी के हुए सोने के छाले हो गए

ऐरे-ग़ैरे नत्थू-ख़ैरे पढ़ रहे हैं चेहरे अब
चेहरे चेहरे न हुए गोया रिसाले हो गए

दाग़ सूरज की हुकूमत पर भी कुछ तो लग गया
कुछ उजाले जब अँधेरों के निवाले हो गए

आइनों पर पत्थरों के क़त्ल का इल्ज़ाम क्यूँ
आइने आईने न हों जैसे भाले हो गए

देख लेते तुम भी अपने इस ज़मीं के 'चाँद' को
इतनी जल्दी आसमाँ के क्यूँ हवाले हो गए
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Chand Akbarabadi