Dil Shahjahanpuri

Dil Shahjahanpuri

@dil-shahjahanpuri

Dil Shahjahanpuri shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Dil Shahjahanpuri's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
हुस्न ने मान लिया क़ाबिल-ए-ताज़ीर मुझे
नज़र आई है मोहब्बत की ये तक़्सीर मुझे

क्यूँ न हो बादा-ए-सर-जोश की तौक़ीर मुझे
मिल गई पीर-ए-ख़राबात से तहरीर मुझे

जल्वा-ए-हुस्न के मफ़्हूम पे जब ग़ौर किया
एक धुँदली सी नज़र आई है तस्वीर मुझे

अब मिरी वहशत-ए-रुस्वा का अजब आलम है
कर दिया आप ने वाबस्ता-ए-ज़ंजीर मुझे

बे-तकल्लुफ़ रुख़-ए-ज़ेबा से उठाए वो नक़ाब
हुस्न ख़ुद पाएगा एक पैकर-ए-तस्वीर मुझे

ज़िंदगी इक नए आलम में नज़र आती है
ले चली आज कहाँ गर्दिश-ए-तक़दीर मुझे

खिच गई दिल-कशी-ए-हुस्न मरी नज़रों में
जी बहलने को मिली आप की तस्वीर मुझे

ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ रुख़-ए-अनवर की सताइश को सिवा
कोई मज़मून न मिला क़ाबिल-ए-तहरीर मुझे

हुस्न-ए-दिलकश के तलव्वुन पे नज़र जब पहुँची
न रहा फिर गिला-ए-गर्दिश-ए-तक़दीर मुझे
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Dil Shahjahanpuri
मायूस-ए-अज़ल हूँ ये माना नाकाम-ए-तमन्ना रहना है
जाते हो कहाँ रुख़ फेर के तुम मुझ को तो अभी कुछ कहना है

खींचेंगे वहाँ फिर सर्द आहें आँखों से लहू फिर बहना है
अफ़्साना कहा था जो हम ने दोहरा के वहीं तक कहना है

दुश्वार बहुत ये मंज़िल थी मर मिट के तह-ए-तुर्बत पहुँचे
हर क़ैद से हम आज़ाद हुए दुनिया से अलग अब रहना है

रखता है क़दम इस कूचा में ज़र्रे हैं क़यामत-ज़ा जिस के
अंजाम-ए-वफ़ा है नज़रों में आग़ाज़ ही से दुख सहना है

ऐ पैक-ए-अजल तेरे हाथों आज़ाद-ए-तअ'ल्लुक़ रूह हुई
ता-हश्र बदल सकता ही नहीं हम ने वो लिबास अब पहना है

ऐ गिर्या-ए-ख़ूँ तासीर दिखा ऐ जोश-ए-फ़ुग़ाँ कुछ हिम्मत कर
रंगीं हो किसी का दामन भी अश्कों का यहाँ तक बहना है

अपना ही सवाल ऐ 'दिल' है जवाब इस बज़्म में आख़िर क्या कहिए
कहना है वही जो सुनना है सुनना है वही जो कहना है
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जहाँ तक इश्क़ की तौफ़ीक़ है रंगीं बनाते हैं
वो सुनते हैं हम उन को सर-गुज़िश्त-ए-दिल सुनाते हैं

उधर हक़-उल-यक़ीं है अब वो आते अब वो आते हैं
उधर अंजुम मिरी इस ज़ेहनियत पर मुस्कुराते हैं

शब-ए-ग़म और महजूरी ये आलम और मजबूरी
टपक पड़ते हैं आँसू जब वो हम को याद आते हैं

वहीं से दर्स-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का आग़ाज़ होता है
जहाँ से वाक़िआ'त-ए-ज़िंदगी हम भूल जाते हैं

हमें कुछ इश्क़ के मफ़्हूम पर है तब्सिरा करना
इक आह-ए-सर्द को उनवान-ए-शरह-ए-ग़म बनाते हैं

बहा कर अश्क-ए-ख़ूँ खींची थीं जो आईना-ए-दिल में
हम उन मौहूम तस्वीरों को अब रंगीं बनाते हैं

शबाब-ए-ज़िंदगी जल्वों का इक मा'सूम नज़्ज़ारा
हमें ऐ दिल वो अफ़्साने अभी तक याद आते हैं
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बे-सूद है ये जोश-ए-गिर्या ऐ शम्अ' सहर हो जाने तक
छींटा तिरे अश्क-ए-पैहम का पहुँचा न कभी परवाने तक

ऐ अहल-ए-नज़र मेरी हस्ती सब कुछ थी कभी अब कुछ भी नहीं
ज़िंदा हूँ मगर मेहमान-ए-बक़ा इक साँस के आने जाने तक

हाँ ग़ौर से इक ख़ुद्दार नज़र अपने ही गरेबाँ पर नासेह
क्या जाने रहेगा किस हद में दीवाना तिरे समझाने तक

ऐ ख़ाक-ए-परेशाँ के ज़र्रो आग़ोश में तुम मुझ को ले लो
तमकीन-ओ-ख़ुदी को ठुकराता पहुँचा हूँ मैं वीराने तक

आशुफ़्ता निज़ाम-ए-हस्ती है कुछ और न बरहम हो जाए
मश्शाता-ए-फ़ित्रत के हाथों गेसू-ए-बुताँ सुलझाने तक

वा'दा है मगर किस आलम में इक शोख़-ए-तग़ाफ़ुल फ़ितरत का
जब लैला-ए-शब के बल खाते गेसू उतर आएँ शाने तक
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