Iftikhar Shahid Abu Saad

Iftikhar Shahid Abu Saad

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Iftikhar Shahid Abu Saad shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Iftikhar Shahid Abu Saad's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
शाम होते ही चराग़ों को जलाने वाले
लौट के आते नहीं छोड़ के जाने वाले

तू मिरी आँख को भाया है मिरे दिल को नहीं
तेरे अतवार तो लगते हैं ज़माने वाले

उम्र भर तुझ को मिरा ख़्वाब नहीं आएगा
वस्ल की शाम मिरा हिज्र मनाने वाले

या'नी कुछ रोज़ तुझे छोड़ के मैं भी ख़ुश था
मुझ को ये बात बताते हैं बताने वाले

ज़िंदगी आज तुझे छोड़ दिया है हम ने
हम नहीं आज तिरे नाज़ उठाने वाले

तू ने देखी मिरे हाथों की महारत लेकिन
वो मिरे पाँव मिरा चाक घुमाने वाले

शौक़-ए-नज़्ज़ारा लिए आँख किधर जाएगी
हुस्न वाले हैं तिरे शहर से जाने वाले

ये भी मुमकिन है हवा कोई तमाशा कर दे
हम तिरे नाम की शमएँ हैं जलाने वाले
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Iftikhar Shahid Abu Saad
ये सोचा है कि मर जाएँ तुम्हारे वार से पहले
तुम्हारी जीत हो जाए हमारी हार से पहले

किसी लम्हे तुम्हारा वार कारी हो भी सकता है
मगर ये सर ही जाएगा मिरी दस्तार से पहले

बता कितना गिरा सकता हूँ ख़ुद को तेरी ख़्वाहिश पर
मिरा मेआ'र भी तो है तिरे मेआ'र से पहले

नज़ारा-हा-ए-दिलकश से गुज़र जाता था बेगाना
मगर ऐ क़ामत-ए-ज़ेबा तिरे दीदार से पहले

सितारों की तरह चमके हमारे ख़ून के छींटे
कि हम ने सर कटाया है फ़राज़-ए-दार से पहले

तलातुम-ख़ेज़ मौजों से मुझे लड़ना तो आता है
मगर मैं डूब सकता हूँ कभी मंजधार से पहले

तिरा ही अक्स मेरी आँख के तिल में फ़रोज़ाँ है
तुझे मैं देख सकता हूँ तिरे दीदार से पहले

कहीं भी जुर्म से पहले सज़ा वाजिब नहीं होती
कोई काफ़िर नहीं होता मगर इंकार से पहले

नए इम्कान ढूँडेगी हमारी जुस्तुजू 'शाहिद'
हम अब के दर बनाएँगे मगर दीवार से पहले
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Iftikhar Shahid Abu Saad
वो ख़्वाब या ख़याल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ
जो रंज-ए-माह-ओ-साल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ

अभी मुझे ख़बर नहीं मैं किस लिए उदास हूँ
जो हुज़्न है मलाल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ

ग़ुबार-ए-आरज़ू छटे तो फिर कोई ख़बर मिले
ये हिज्र है विसाल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ

फ़क़ीह-ए-शहर एक जाम पी के देख लूँ ज़रा
हराम या हलाल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ

कई दिनों से एक शे'र भी नहीं कहा गया
उरूज या ज़वाल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ

गो ज़ख़्म सिल गए मगर कसक तो और बढ़ गई
ये कैसा इंदिमाल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ

कली चटकने दीजिए अभी न मुझ से पूछिए
ये ज़र्द है कि लाल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ

रदीफ़ और क़ाफ़िए निभा दिए गए मगर
ग़ज़ल भी ला-ज़वाल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ

अभी तो मेरे पास था अभी ये दिल किधर गया
ये ज़ुल्फ़ है कि जाल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ

हमारे साथ यार लोग फिर से हाथ कर गए
या अब के तेरी चाल है मैं जान लूँ तो कुछ कहूँ
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