ख़लिश बन कर तेरी उल्फ़त मेरे सीने में रहती है
जुनूँ की बदमिज़ाजी इसलिए लहजे में रहती है
मुझे गुमराह करती है ये चेहरों की अदाकारी
हक़ीक़त आज भी गोया किसी पर्दे में रहती है
गुमाँ जैसा हो जितना हो यक़ीनन टूट जाएगा
ख़ुमारी कब तलक शामिल किसी नश्शे में रहती है
तेरी यादें कसक बन कर रवाँ रहती हैं अश्कों में
सहूलत तू समझता है मुझे रोने में रहती है
बुरा क्या मानना बर्ताव का तेरे बिछड़ने पर
ज़रा जुरअत बग़ावत की हर इक रिश्ते में रहती है
यही कुछ सोच कर भी मैं शिकायत अब नहीं करता
वजाहत की नई पर्ची तेरे बस्ते में रहती है
चल आ इक दिन मिला दूॅं मैं तुझे ऐ ज़िंदगी इस से
उदासी है तेरी सौतन मेरे कमरे में रहती है
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