Jalaal

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@kklovwat

Jalaal shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Jalaal's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
मुझको ग़ैरत का तो एहसास दिला दे कोई
कुफ़्र की नींद से आकर के जगा दे कोई

अगली नस्लें न मोहब्बत को मसीहाई कहें
अब तो तारीख़ के पन्नों को जला दे कोई

ख़ौफ़ तारी न हुआ सानेहे गुज़रे भी बहुत
मुझको हैरत भी नहीं ख़ैर भुला दे कोई

ये अजब बात नहीं ख़ुद से चुराऊॅं नज़रें
मुझको मेरी ही हक़ीक़त जो बता दे कोई

तेरे दिल का मैं बशर आज तेरे क़दमों में
अपना मेयार बता कितना गिरा दे कोई

ख़ुद के रोने की वजाहत मैं तुझे क्या देता
जुज़ तेरे हक़ न दिया मुझको रुला दे कोई

अच्छा ख़ासा मैं उदासी में मगन रहता हूॅं
जाम-ए-इशरत न मुझे ला के पिला दे कोई

अब सकत है न मेरी जीने की चाहत ही रही
हो सके तो ये मेरी उम्र बिता दे कोई

सोग जिसको भी मनाना है मोहब्बत का 'जलाल'
मेरी मजलिस का उसे जा के पता दे कोई
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ख़लिश बन कर तेरी उल्फ़त मेरे सीने में रहती है
जुनूँ की बदमिज़ाजी इसलिए लहजे में रहती है

मुझे गुमराह करती है ये चेहरों की अदाकारी
हक़ीक़त आज भी गोया किसी पर्दे में रहती है

गुमाँ जैसा हो जितना हो यक़ीनन टूट जाएगा
ख़ुमारी कब तलक शामिल किसी नश्शे में रहती है

तेरी यादें कसक बन कर रवाँ रहती हैं अश्कों में
सहूलत तू समझता है मुझे रोने में रहती है

बुरा क्या मानना बर्ताव का तेरे बिछड़ने पर
ज़रा जुरअत बग़ावत की हर इक रिश्ते में रहती है

यही कुछ सोच कर भी मैं शिकायत अब नहीं करता
वजाहत की नई पर्ची तेरे बस्ते में रहती है

चल आ इक दिन मिला दूॅं मैं तुझे ऐ ज़िंदगी इस से
उदासी है तेरी सौतन मेरे कमरे में रहती है
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बातों से तेरी तुझको मुकरने नहीं दूँगा
इल्ज़ाम कोई सर मेरे धरने नहीं दूँगा

बर्बाद करूँगा मैं तेरे सामने ख़ुद को
और आह भी तुझको कभी भरने नहीं दूँगा

गर ज़हर सिफ़त है ये मोहब्बत का नशा तो
ये ज़हर कभी रग में उतरने नहीं दूँगा

अशआर मेरे दिल में तेरे नक़्श रहेंगे
ख़ुद को मैं तुझे यूँ ही बिसरने नहीं दूँगा

ख़ुद को न सँवारूँगा किसी दाम में आकर
ता-उम्र तुझे भी मैं सँवरने नहीं दूँगा

मैं खुद ही कुरेदूँगा इसे फ़ुर्सत-ए-लम्हात
ये ज़ख़्म-ए-जिगर मैं कभी भरने नहीं दूँगा

जिसको भी रखा दिल में उसी ने इसे तोड़ा
अब दिल में किसी को भी उतरने नहीं दूँगा

जिस दिल में मुक़ीम अब मुझे ठुकरा के हुए हो
उस दिल में तुम्हें भी मैं ठहरने नहीं दूँगा

आमादा करूँगा मैं तुम्हें जंग पे इक दिन
फिर सामने आओ तो बिफरने नहीं दूँगा
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सहरा है वतन मेरा गर्दिश में ठिकाना है
पर लोग इसे समझे ये तर्क-ए-ज़माना है

कुछ याद नहीं मुझको क्या कार-ए-मोहब्बत था
जो पास है मेरे अब इक ज़ख़्म पुराना है

इक चाह थी जो मेरी मैंने न कभी पाई
कहने को मगर फिर भी क़दमों में ज़माना है

मंसूब हुआ मतलब मैं दौर-ए-ज़माना से
हालात के आगे जब सर को ही झुकाना है

ये ज़ौक़ है बस मेरा तुम जिसको सुख़न समझे
इक नाम ही उसका बस लिख लिख के मिटाना है

अब कोई सुने दिल की ये अश्क मेरे पोंछे
कब तक ही यूँही ख़ुद को हर बार मनाना है

बर्बाद करूँ ख़ुद को ये शौक़ नहीं मेरा
ऐ दुश्मन-ए-जाँ तेरा पर हाथ बँटाना है

मैं अब भी दुआ-गो हूँ इक फ़र्ज़ निभाने को
मैंने तो अभी अपने क़ातिल को बचाना है

अब फ़र्क़ नहीं पड़ता जा मैंने इजाज़त दी
जिस नाम का भी तुझको सिंदूर लगाना है

आसान समझते हो तुम शेर कोई कहना
इक बात बतानी है इक राज़ छुपाना है

क्यूँ छोड़ के जाते हो ऐ अहल-ए-सितम मुझको
तुमने तो अभी मुझको तुर्बत में सुलाना है
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