Pallavi Mishra

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@pallavi-mishra

Pallavi Mishra shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Pallavi Mishra's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
उसे मोहब्बत है हम से लेकिन कभी ज़बाँ से कहा नहीं है
निगाह पढ़ने में हम हैं माहिर उसे ये शायद पता नहीं है

क़दम तले है ज़मीन ग़ाएब कहीं पे छत का पता नहीं है
ये भेद क्यूँ है समझ सके जो अभी तलक तो मिला नहीं है

गुज़र रही ज़िंदगी ये कैसी जो पूछते हो तो क्या बताऊँ
ख़ुदा से मुझ को गिला नहीं है मगर जो चाहा मिला नहीं है

वो कह रहा है कि जान अपनी हमारी ख़ातिर लुटा सकेगा
है कौन जिस ने वफ़ा में ये सब कहा नहीं या सुना नहीं है

न ज़िंदगी से मुझे गिला है न ज़िंदगी से तुझे गिला है
मगर अलग इस तरह से जीना तुम्हीं कहो क्या सज़ा नहीं है

किसी को माँगे बिना मिले सब किसी की झोली रहे है ख़ाली
कि इस के पीछे ख़ुदा की मंशा है क्या किसी को पता नहीं है

कि मुश्किलों से डरो नहीं और काम हिम्मत से लो हमेशा
तभी सफलता मिलेगी इक दिन ये सच किसी से छुपा नहीं है
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Pallavi Mishra
क्यूँ तीरगी सी छाई चराग़ों के दरमियाँ
क्या हुस्न छुप गया है नक़ाबों के दरमियाँ

नासूर बन गया कई सालों के दरमियाँ
इक ज़ख़्म जाने कैसा है छालों के दरमियाँ

वो नींद में भी आँख से ओझल न हो जनाब
उस को बसा लिया है निगाहों के दरमियाँ

शिद्दत है प्यास में तो सरोवर के जा क़रीब
कब तिश्नगी मिटी है सराबों के दरमियाँ

औलाद पे अगर जो मुसीबत न होती आज
क्यूँ माँ का हाथ रुकता निवालों के दरमियाँ

यूँ ही जनाब हम को ये ओहदा नहीं नसीब
सालों है सर खपाया किताबों के दरमियाँ

जो ग़ौर से पढ़ोगे सवालों को बार बार
मिल जाएगा जवाब सवालों के दरमियाँ

साहिल को तोड़ने की हिमाक़त किए बग़ैर
लहरें उछल रही हैं किनारों के दरमियाँ

मिलता नहीं है कुछ भी तरद्दुद किए बग़ैर
काँटे भरे पड़े हैं गुलाबों के दरमियाँ

शायद मिरे सनम ने किया याद मुझ को आज
हिचकी तभी है आई निवालों के दरमियाँ
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Pallavi Mishra
कभी सब छीन लेता हूँ कभी ने'मत लुटाता हूँ
मुझे सब वक़्त कहते हैं मैं उँगली पर नचाता हूँ

न मैं का'बे में रहता हूँ न मैं काशी में रहता हूँ
गरेबाँ झाँक कर देखो मैं तेरे दिल में बस्ता हूँ

अकेला छोड़ कर मुझ को यकायक चल दिए सारे
सहारा जब ख़ुदा का है कहेगा कौन तन्हा हूँ

गरजती है घटा तो क्या है तूफ़ानी हवा तो क्या
जिगर में है बहुत हिम्मत किसी से मैं न डरता हूँ

बिछड़ जाऊँ अगर तुम से अंधेरा छा ही जाएगा
कि जिस में नूर है पिन्हा मैं ऐसा इक नगीना हूँ

क़सम खा कर मुकर जाना तिरी आदत पुरानी है
क़सम से जब क़सम खाऊँ मैं शिद्दत से निभाता हूँ

ये सूरज चाँद की यारी बड़ी अद्भुत पहेली है
कहें दोनों ही आपस में कि तुम आओ मैं जाता हूँ
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Pallavi Mishra