ताज से सर तिरा सजाऊँगी
तू जो कह दे क़सम से लाऊँगी
मैं ख़ुदा से दुआ ये करती हूँ
अपना शौहर तुम्हें बनाऊँगी
तेरी ख़्वाहिश गले लगाने की
जान इक दिन गले लगाऊँगी
सब्र करना ज़रूर होगा ये
घर की रौनक़ तुम्हें बनाऊँगी
यार ग़ुस्सा नहीं किया करते
प्यार से मैं उसे मनाऊँगी
बुत-परस्ती हराम है जानी
है ख़ुदा कौन ये पढ़ाऊँगी
तू न समझे तो कौन समझेगा
अब ख़ुदा को ही सब बताऊँगी
तू मुझे भूलने की कोशिश कर
याद मैं बार बार आऊँगी
काँच जैसे बिखर गया है दिल
दिल के टुकड़े तुम्हें दिखाऊँगी
हार कर ख़ुद-कुशी नहीं करते
यार जीना तुम्हें सिखाऊँगी
छोड़ती हूँ ख़ुदा की रहमत पर
उसकी रहमत हुई तो पाऊँगी
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