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बिन फलों का पेड़ था जो, बे-सहारा हो गया  - Jitendra Tiwari

बिन फलों का पेड़ था जो, बे-सहारा हो गया
पेड़ जिस पर फल लगे सबका दुलारा हो गया

काम लगभग बन चुका था इस दफ़ा तदबीर से
पर मेरी तक़दीर का फिर से इशारा हो गया

हम ज़रा सा क्या अलग चलने लगे सारा जहाँ
देखते ही देखते दुश्मन हमारा हो गया

सात जन्मों की कसम लेकर चले थे साथ वो
सात दिन के बाद ही मेरा-तुम्हारा हो गया

इश्क़ होता है फ़क़त इक बार कहते हैं मगर
वो बताओ क्या करें जिनको दोबारा हो गया

इस क़दर हमशक्ल हैं दोनों बताऊँ क्या मियाँ
चाँद को देखा, लगा, उनका नज़ारा हो गया

इश्क़ की बाज़ी लगाई थी बड़े ही शौक़ से
सोचते थे हम नफ़ा होगा, ख़सारा हो गया

जाएँगे तो कौन रोकेगा हमें, ये सोचकर
उठ रहे थे हम तभी उनका इशारा हो गया

मैं वही करता रहूँगा जो कहेगा दिल मेरा
सिर्फ़ इतनी बात पर सबसे किनारा हो गया

- Jitendra Tiwari

Ishaara Shayari

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