हम को ख़बर न थी कि हमें दर्द क्या मिला
देखा जो पीठ को तो तिरा ही छुरा मिला
मैं ढूँढने चला था मोहब्बत का जो निशाँ
दिल हाए वो तो राह में बे-ख़ुद पड़ा मिला
क्या कुछ गुज़र रही है किसी दिल पे देखिए
इसको तो दर्द कोई बहुत बे-मज़ा मिला
इक रंग मंच सी हो गई है ये ज़िन्दगी
उस पर सितम ये है कि तुम्हें मुद्दआ मिला
चारों तरफ़ से आग बरसती थी हमपे तब
है शुक्र अब तिरा कि तिरा आसरा मिला
यूँ तो बहुत से लोग मिले राह में हमें
लेकिन जो भी मिला वो बहुत बे-वफ़ा मिला
गुल का मिज़ाज देख के खिलता है मेरा दिल
काँटों में भी दिखा वो अगर तो खिला मिला
हर पेड़ पर नज़र है ज़माने की देर से
क्या ख़ूब ये परिंद को घर बे-रिदा मिला
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