कितना खेंचेगी हमें ज़िन्दगी मालूम नहीं
कब तलक रोज़ करे ख़ुदकुशी मालूम नहीं
मशवरा दे रहे हैं ऐसे भी कुछ लोग हमें
आप और तुम का जिन्हे फ़र्क़ भी मालूम नहीं
आप दरिया को मेरे पास ले कर आये हैं
आप लोगो को मेरी तिशनगी मालूम नहीं
अब तसव्वुर में भी वो शख्स नहीं आता है
कितनी कर पाएंगे हम शा'इरी मालूम नहीं
काश वो आएं कभी और कहें के पहचाना
और फिर हम कहें के जी नही मालूम नहीं
एक भटके से मुसाफिर सा मेरा हाल है अब
कशतियों का पता है पर नदी मालूम नहीं
चापलूसी नहीं की काम किया है मैंने
क्या रहेगी मेरी अब नौकरी मालूम नहीं
अपने बच्चों के लिये जंग को छोड़ आये हम
ये दिलेरी है या है बुज़दिली मालूम नहीं
इम्तिहाँ में भला क्यों ही नहीं सर पटके हम
एक ही आया सवाल और वही मालूम नहीं
रोज़ ज़ख्मों में नये जख्म निकल आते हैं
किसने की थी मेरी चारागरी मालूम नहीं
कैसे हम नाज़ करें ऐसी ख़ुशी पर 'आक़िब'
दायमी है, के है ये आरजी मालूम नहीं
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