अपने माहौल से थे क़ैस के रिश्ते क्या क्या
दश्त में आज भी उठते हैं बगूले क्या क्या
इश्क़ मे'आर-ए-वफ़ा को नहीं करता नीलाम
वर्ना इदराक ने दिखलाए थे रस्ते क्या क्या
ये अलग बात कि बरसे नहीं गरजे तो बहुत
वर्ना बादल मिरे सहराओं पे उमडे क्या क्या
आग भड़की तो दर-ओ-बाम हुए राख के ढेर
और देते रहे अहबाब दिलासे क्या क्या
लोग अशिया की तरह बिक गए अशिया के लिए
सर-ए-बाज़ार तमाशे नज़र आए क्या क्या
लफ़्ज़ किस शान से तख़्लीक़ हुआ था लेकिन
उस का मफ़्हूम बदलते रहे नुक़्ते क्या क्या
इक किरन तक भी न पहुँची मिरे बातिन में 'नदीम'
सर-ए-अफ़्लाक दमकते रहे तारे क्या क्या
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