जब तलक तेरा इंतिज़ार ना था
दिल मेरा इतना बेक़रार ना था
प्यार था रूठना मनाना था
सब था रिश्ते में पर दरार ना था
मैं जो बेफ़िक्र आसमाँ में थी
मुझपे दुनिया का कुछ उधार ना था
उसको कुछ और तलब थी मुझसे
उसपे मेरा ज़ुनून सवार ना था
फूल खिल के भी मुस्कुराये नहीं
कोई मौसम था पर बहार ना था
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