न दिलबर याद आता है, न क़ातिल याद आता है
फँसे कश्ती जो तूफ़ाँ में तो साहिल याद आता है
वो जिसने लब मेरे रोके थे, दरवाज़े पे चाहत के
तेरे होठों के पहरे पर जो था तिल, याद आता है
सियासत की भी बाते हैं उसी हरजाई के जैसी
करे तक़रीर जब वो, जाम-ए -बातिल याद आता है
मुझे ए उम्र-ए-नो, बरबाद कर डाला मुहब्बत ने
नहीं तो दिल मेरा सबसे था आक़िल, याद आता है
हज़ारों बार कोशिश की भूलाने की, मगर फिर भी
कभी मुझ पर तेरा दिल भी था माइल, याद आता है
गया जो छोड़ कर मुझको, ख़ुदा की मसलहत होगी
हयात-ए-बज़्म का वो ही था हासिल, याद आता है
बिगड़ते हाल के आगे बिखरती कब थी यह क़िस्मत
वो साया माँ का था ग़म के मुक़ाबिल, याद आता है
ये कहना था मेरे अब्बू का, गर हिम्मत न हारोगे
तो हो जायेगी सब आसान, मुश्किल याद आता है
फ़क़त है वक़्त का खेल, दुनिया से जुदा है जो
कभी हम भी किसी के थे, यह साहिल!याद आता है
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