सुनो दिल-जू ग़ज़ल वालों कभी मेरा भी कोई था
किसी को छोड़ा भी था मैंने सो बिछड़ा भी कोई था
चराग़-ए-आख़िर-ए-शब के अलावा मुश्तमिल थे लोग
सहर तक तेरी याद-ए-रफ़्ता में रोया भी कोई था
वो जो सबका है उससे पूछना उसका भी कोई है
है गर तो पूछना उससे कभी उसका भी कोई था
तुम्हें लगता है बस तुम थे अरे बुद्धू तेरे बाहम
दिनों चलता भी कोई था इशा जलता भी कोई था
मोहब्बत की कहानी है बड़ी लम्बी नए आशिक़
कभी मजनूँ भी कोई था कभी राँझा भी कोई था
तुझे जाना है तो ऐ राहत-ए-जाँ चल जा दुनिया घूम
मगर मुझसा न कोई है न ही मुझसा भी कोई था
तुम्हें कुछ फ़र्क पड़ता है कभी छोड़ो भी जाने दो
गिला भी कोई है वरना कभी शिकवा भी कोई था
बडे़ नाराज़ हो मुझसे जो ख़ुद-सोज़ी न करता तो
मैं क्या करता सिवा इसके बता रस्ता भी कोई था
यक़ीनन छूट जाते हैं पुराने सब सफ़र में यार
किसे मक़ते पे आता है कभी मतला भी कोई था
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