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रात गहरी है मगर एक सहारा है मुझे  - Faizi

रात गहरी है मगर एक सहारा है मुझे 
ये मिरी आँख का आँसू ही सितारा है मुझे 

मैं किसी ध्यान में बैठा हूँ मुझे क्या मालूम 
एक आहट ने कई बार पुकारा है मुझे 

आँख से गर्द हटाता हूँ तो क्या देखता हूँ 
अपने बिखरे हुए मलबे का नज़ारा है मुझे 

ऐ मिरे लाडले ऐ नाज़ के पाले हुए दिल 
तू ने किस कू-ए-मलामत से गुज़ारा है मुझे 

मैं तो अब जैसे भी गुज़रेगी गुज़ारूँगा यहाँ 
तुम कहाँ जाओगे धड़का तो तुम्हारा है मुझे 

तू ने क्या खोल के रख दी है लपेटी हुई उम्र 
तू ने किन आख़िरी लम्हों में पुकारा है मुझे 

मैं कहाँ जाता था उस बज़्म-ए-नज़र-बाज़ाँ में 
लेकिन अब के तिरे अबरू का इशारा है मुझे 

जाने मैं कौन था लोगों से भरी दुनिया में 
मेरी तन्हाई ने शीशे में उतारा है मुझे 

ऐ मिरे लाडले ऐ नाज़ के पाले हुए दिल 
तू ने किस कू-ए-मलामत से गुज़ारा है मुझे 

मैं तो अब जैसे भी गुज़रेगी गुज़ारूँगा यहाँ 
तुम कहाँ जाओगे धड़का तो तुम्हारा है मुझे 

तू ने क्या खोल के रख दी है लपेटी हुई उम्र 
तू ने किन आख़िरी लम्हों में पुकारा है मुझे

 मैं कहाँ जाता था उस बज़्म-ए-नज़र-बाज़ाँ में 
लेकिन अब के तिरे अबरू का इशारा है मुझे 

जाने मैं कौन था लोगों से भरी दुनिया में 
मेरी तन्हाई ने शीशे में उतारा है मुझे 

- Faizi

Dil Shayari

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