0

कोई नाम है न कोई निशाँ मुझे क्या हुआ  - Faizi

कोई नाम है न कोई निशाँ मुझे क्या हुआ
मैं बिखर गया हूँ कहाँ कहाँ मुझे क्या हुआ

किसे ढूँडता हूँ मैं अपने क़़ुर्ब-ओ-जवार में
ऐ फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-दोस्ताँ मुझे क्या हुआ

ये कहाँ पड़ा हूँ ज़मीं के गर्द-ओ-ग़ुबार में
वो कहाँ गया मिरा आसमाँ मुझे क्या हुआ

कोई रात थी कोई चाँद था कई लोग थे
वो अजब समाँ था मगर वहाँ मुझे क्या हुआ

मिरे रू-ब-रू मुझे मैं दिखाई नहीं दिया
मिरे आईने मिरे राज़-दाँ मुझे क्या हुआ

- Faizi

Miscellaneous Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Faizi

As you were reading Shayari by Faizi

Similar Writers

our suggestion based on Faizi

Similar Moods

As you were reading Miscellaneous Shayari