0

किस तरह कोई धूप में पिघले है जले है - Kaleem Aajiz

किस तरह कोई धूप में पिघले है जले है
ये बात वो क्या जाने जो साए में पले है

दिल दर्द की भट्टी में कई बार जले है
तब एक ग़ज़ल हुस्न के साँचे में ढले है

क्या दिल है कि इक साँस भी आराम न ले है
महफ़िल से जो निकले है तो ख़ल्वत में जले है

भूली हुई याद आ के कलेजे को मले है
जब शाम गुज़र जाए है जब रात ढले है

हाँ देख ज़रा क्या तिरे क़दमों के तले है
ठोकर भी वो खाए है जो इतरा के चले है

- Kaleem Aajiz

Husn Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Kaleem Aajiz

As you were reading Shayari by Kaleem Aajiz

Similar Writers

our suggestion based on Kaleem Aajiz

Similar Moods

As you were reading Husn Shayari