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कल शब हसीन ख़्वाबों की तस्वीर बनाते हुए - Mohsin Shaikh

कल शब हसीन ख़्वाबों की तस्वीर बनाते हुए
राँझे की आँख लग गई थी हीर बनाते हुए

आहनगरी ही पेशा हमारा है तो फिर आज क्यों
ये हाथ कपकपाते हैं शम्शीर बनाते हुए

गर खेल ज़िंदगी का दुबारा हो तो क़ातिब कभी
लिखना न तू मिरा उसे तक़्दीर बनाते हुए

चाहा कि धार दार हो बस इस लिए उन आँखों को
रक्खा गया था पेशे नज़र तीर बनाते हुए

शादाब की हो खैर कि ज़िन्दान में चलता रहा
उसका ही ज़िक्र हर घड़ी ज़ंजीर बनाते हुए

- Mohsin Shaikh

Khwab Shayari

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