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Chehra Shayari
मुख़्तसर होते हुए भी ज़िन्दगी बढ़ जाएगी
माँ की आँखें चूम लीजे रौशनी बढ़ जाएगी
Munawwar Rana
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आपकी आँखें अगर शेर सुनाने लग जाएँ
हम जो ग़ज़लें लिए फिरते हैं, ठिकाने लग जाएँ
Rehman Faris
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मैं क़िस्सा मुख़्तसर कर के, ज़रा नीची नज़र कर के
ये कहता हूँ अभी तुम से, मोहब्बत हो गई तुम से
Zubair Ali Tabish
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आँखें मैंने बन्द रखी हैं
यानी उनको देख रहा हूँ
Bhaskar Shukla
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आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
Waseem Barelvi
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कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
Ibn E Insha
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ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं
Aalok Shrivastav
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कभी यक-ब-यक तवज्जोह कभी दफ़अतन तग़ाफ़ुल
मुझे आज़मा रहा है कोई रुख़ बदल बदल कर
Shakeel Badayuni
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ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
Sahir Ludhianvi
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किस की होली जश्न-ए-नौ-रोज़ी है आज
सुर्ख़ मय से साक़िया दस्तार रंग
Imam Bakhsh Nasikh
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दश्त जैसी उजाड़ हैं आँखें
इन दरीचों से ख़्वाब क्या झांकें
Siraj Faisal Khan
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जो कहता है वैसे करना पड़ता है
इतना प्यारा है कि डरना पड़ता है
आँखें काली कर देता है उसका दुख
सबको ये जुर्माना भरना पड़ता है
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Kafeel Rana
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बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिए
ये है मसल कि फूल नहीं पंखुड़ी सही
Sheikh Ibrahim Zauq
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अब ज़रूरी तो नही है कि वो सब कुछ कह दे
दिल मे जो कुछ भी हो आँखों से नज़र आता है
मैं उससे सिर्फ ये कहता हूं कि घर जाना है
और वो मारने मरने पे उतर आता है
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Tehzeeb Hafi
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मैं थक गया हूँ ख़ुदारा उदासी होते हुए
किसी के सुर्ख़ लबों का मुझे तबस्सुम कर
Amaan Haider
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ज़िक्र तबस्सुम का आते ही लगते हैं इतराने लोग
और ज़रा सी ठेस लगी तो जा पहुँचे मयख़ाने लोग
Ateeq Allahabadi
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इश्क़ में जी को सब्र ओ ताब कहाँ
उस से आँखें लड़ीं तो ख़्वाब कहाँ
Meer Taqi Meer
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सुलग रहे थे शजर दिल तमाम भँवरों के
दिल अपना वार रहा था कोई रुख़-ए-गुल पर
बहुत मलाल हुआ देखकर गुलिस्ताँ में
तमाचा मार रहा था कोई रुख़-ए-गुल पर
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Shajar Abbas
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आप तो मुँह फेर कर कहते हैं आने के लिए
वस्ल का वादा ज़रा आँखें मिला कर कीजिए
Lala Madhav Ram Jauhar
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इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता
कब से मैं नक़ाबों की तहें खोल रहा हूँ
Moghisuddin Fareedi
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