लगता है इस जहाँ की अब ख़ैरियत नहीं है
मासूम में भी अब तो मासूमियत नहीं है
फ़ुर्सत को हो गई है फ़ुर्सत ज़माने भर से
मसरूफ़ियत को भी अब मसरूफ़ियत नहीं है
अब और कितना नीचे गिर सकती है ये दुनिया
इंसान है सभी पर इंसानियत नहीं है
रिश्ते ही खा रहे है रिश्तो की अहमियत को
और आप कह रहे है हैवानियत नहीं है
देखो जिधर,उधर है नफ़रत का बोल-बाला
दुनिया में अब मोहब्बत की अहमियत नहीं है
अंदर सुलग रहे है बीते दिनों के लश्कर
दिल भी धुआँ-धुआँ है कुछ ख़ैरियत नहीं है
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