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दिल ए ग़रीब को नाशाद कर के रोया जाए  - Shadab Javed

दिल ए ग़रीब को नाशाद कर के रोया जाए
कोई नहीं है जिसे याद कर के रोया जाए

अमीर ए शहर के बस का नहीं हमारा सवाल
किसी फ़क़ीर से फरियाद कर के रोया जाए

सुतून ए अर्श है लर्ज़ा किसी की आहों से
ख़राब-हालो उसे शाद कर के रोया जाए

किसी को देख के हंसने से लाख बेहतर है
किसी के दुख में कुछ इमदाद कर के रोया जाए

ये कोह ए ज़ीस्त फ़क़त आंसुओं से पिघलेगा
सो अपने अज़्म को फरहाद कर के रोया जाए

सबब नहीं है कोई आह ओ सीना-कूबी का
सबब नहीं है तो ईजाद कर के रोया जाए

वो हादसा मेरी आँखों को ख़ुश्क कर गया था
उसी को आज न क्यूँ याद कर के रोया जाए

नज़र में सुर्ख़ ज़मीं है लहू है लाशें हैं
सो शहर ए क़ल्ब को बग़दाद कर के रोया जाए

ख़ुदा करे मेरी शादाबियत मरे किसी शब
ख़ुदा करे मुझे शबज़ाद कर के रोया जाए

- Shadab Javed

Dil Shayari

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