आज तुमने किसको ये बोसा किया है
कुछ किया है तो कहाँ ख़र्चा किया है
देखता तू क्यूँ नहीं इक सम्त मेरी
क्या तुझे भी प्यार ने अंधा किया है
दिल को भी उम्मीद थी उससे कि जिसने
काम भी दफ़्तर में इक हफ़्ता किया है
ढूँढ़ता जब भी में ख़ुद को दिल गली में
बेवफ़ा ने पीठ में धप्पा किया है
देख कर सूरत बुरी देखी न सीरत
शीशे ने भी हर्फ़ को उल्टा किया है
छोड़ देंगे ख़्वाब तेरा कल से अब हम
रात ठहरो रात से वादा किया है
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