ख़लिश जिगर में कशिश नज़र में यही है तेरा मेरा फ़साना
क़दम बढ़ा तू अदम की जानिब जहाँ से आया वहीं है जाना
तुम्हीं बता दो तुम्हीं जता दो नहीं चलेगा कोई बहाना
जहाँ मिले हम सदा खिले हम अगर हो ऐसा कोई ठिकाना
ख़िज़ाँ की रुत में ये ज़ेब-ओ-ज़ीनत गुलाब लहजा करे अदावत
पिघलते शीशे मचलते पत्थर दिखाए अंदाज़ आशिक़ाना
नसीब मेरा चमक उठा है क़दम क़दम पर मिला है रहबर
नए सफ़र पे निकल पड़ा हूँ भुला के अब वो मकाँ पुराना
निखारता है अदा-ए-वहशत तराशता है बला-ए-क़ुदरत
बना समंदर ग़नी क़लंदर तेरा दिवाना लिखे तराना
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