Akhtar Muslimi

Akhtar Muslimi

@akhtar-muslimi

Akhtar Muslimi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Akhtar Muslimi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

1

Content

11

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
कहाँ जाएँ छोड़ के हम उसे कोई और उस के सिवा भी है
वही दर्द-ए-दिल भी है दोस्तो वही दर्द-ए-दिल की दवा भी है

मिरी कश्ती लाख भँवर में है न करूँगा मैं तिरी मिन्नतें
ये पता नहीं तुझे नाख़ुदा मिरे साथ मेरा ख़ुदा भी है

ये अदा भी उस की अजीब है कि बढ़ा के हौसला-ए-नज़र
मुझे इज़्न-ए-दीद दिया भी है मिरे देखने पे ख़फ़ा भी है

मिरी सम्त महफ़िल-ए-ग़ैर में वो अदा-ए-नाज़ से देखना
जो ख़ता-ए-इश्क़ की है सज़ा तो मिरी वफ़ा का सिला भी है

जो हुजूम-ए-ग़म से है आँख नम तो लबों पे नाले हैं दम-ब-दम
उसे किस तरह से छुपाएँ हम कहीं राज़-ए-इश्क़ छुपा भी है

ये बजा कि 'अख़्तर'-ए-मुस्लिमी है ज़माने भर से बुरा मगर
उसे देखिए जो ख़ुलूस से तो भलों में एक भला भी है
Read Full
Akhtar Muslimi
न समझ सकी जो दुनिया ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी
तिरा चेहरा ख़ुद कहेगा मिरे क़त्ल की कहानी

ये अज़ाब-ए-आसमानी ये इताब-ए-ना-गहानी
हैं कहाँ समझने वाले मिरे आँसुओं को पानी

कहीं लुट रहा है ख़िर्मन कहीं जल रहा है गुलशन
उसे किस ने सौंप दी है ये चमन की पासबानी

मिरी तुझ से क्या है निस्बत मिरा तुझ से वास्ता क्या
तू हरीस-ए-लाला-ओ-गुल मैं फ़िदा-ए-बाग़बानी

तुझे नाज़ हुस्न पर है मुझे नाज़ इश्क़ पर है
तिरा हुस्न चंद-रोज़ा मिरा इश्क़ जावेदानी

ये वो दिल-रुबा है दुनिया मिरे दोस्तो कि जिस की
न कोई अदा नई है न कोई अदा पुरानी

कोई उस से कह दे 'अख़्तर' ज़रा होश में वो आए
न रहेगा ज़िंदगी भर ये सुरूर-ए-शादमानी
Read Full
Akhtar Muslimi
माइल-ए-लुत्फ़ है आमादा-ए-बे-दाद भी है
वो सरापा-ए-मोहब्बत सितम-ईजाद भी है

शब-ए-तन्हाई भी है साथ तिरी याद भी है
दिल का क्या हाल कहूँ शाद भी नाशाद भी है

दौलत-ए-ग़म से हर इक गोशा है इस का मामूर
दिल की दुनिया मिरी आबाद भी बर्बाद भी है

बे-सबब तो नहीं एहसास ख़लिश का मुझ को
भूलने वाले तिरे दिल में मिरी याद भी है

क्यूँ न आसाँ हो रह-ए-इश्क़ कि मेरे हम-राह
जज़्बा-ए-'क़ैस' भी है हिम्मत-ए-'फ़रहाद' भी है

जल गया अपना नशेमन मगर अफ़सोस ये है
फूँकने वालों में इक बर्क़-ए-चमन-ज़ाद भी है

मेरा विज्दान मुहर्रिक है मिरे नग़्मों का
तब्-ए-मौज़ूँ मिरी पाबंद भी आज़ाद भी है

क्या बताऊँ मैं तुम्हें क्या है नवा-ए-'अख़्तर'
नग़्मे का नग़्मा है फ़रियाद की फ़रियाद भी है
Read Full
Akhtar Muslimi