न समझ सकी जो दुनिया ये ज़बान-ए-बे-ज़बानी
तिरा चेहरा ख़ुद कहेगा मिरे क़त्ल की कहानी
ये अज़ाब-ए-आसमानी ये इताब-ए-ना-गहानी
हैं कहाँ समझने वाले मिरे आँसुओं को पानी
कहीं लुट रहा है ख़िर्मन कहीं जल रहा है गुलशन
उसे किस ने सौंप दी है ये चमन की पासबानी
मिरी तुझ से क्या है निस्बत मिरा तुझ से वास्ता क्या
तू हरीस-ए-लाला-ओ-गुल मैं फ़िदा-ए-बाग़बानी
तुझे नाज़ हुस्न पर है मुझे नाज़ इश्क़ पर है
तिरा हुस्न चंद-रोज़ा मिरा इश्क़ जावेदानी
ये वो दिल-रुबा है दुनिया मिरे दोस्तो कि जिस की
न कोई अदा नई है न कोई अदा पुरानी
कोई उस से कह दे 'अख़्तर' ज़रा होश में वो आए
न रहेगा ज़िंदगी भर ये सुरूर-ए-शादमानी
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Akhtar Muslimi
our suggestion based on Akhtar Muslimi
As you were reading Miscellaneous Shayari