Baldev singh Hamdam

Baldev singh Hamdam

@baldev-singh-hamdam

Baldev singh Hamdam shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Baldev singh Hamdam's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
जुनूँ बग़ैर कभी आगही नहीं होती
जले न शम्अ तो कुछ रौशनी नहीं होती

वो सज्दा सज्दा नहीं जिस में होश बाक़ी हो
ब-क़ैद-ए-होश जो हो बंदगी नहीं होती

क़बा-ए-हुस्न की ताबिश अगर हो आँखों में
बशर के दिल में कभी तीरगी नहीं होती

क़दम क़दम पे जो खाए फ़रेब हस्ती का
उस आदमी की कोई ज़िंदगी नहीं होती

रुमूज़-ए-ज़ीस्त से वाक़िफ़ हुआ है जो इंसाँ
बका-ए-ज़ीस्त की उस को ख़ुशी नहीं होती

बशर के वास्ते लाज़िम है जज़्बा-ए-उल्फ़त
चमन में गुल न हो तो ज़िंदगी नहीं होती

बशर का अज़्म निखरता है मुश्किलों ही में
अलम न जिस में हो वो ज़िंदगी नहीं होती

इसी उमीद पे 'हमदम' गुनाह करता हूँ
ख़ुदा के घर में करम की कमी नहीं होती
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Baldev singh Hamdam
जो बात रहे दिल में वही बात बड़ी है
उल्फ़त का तक़ाज़ा भी यही कम-सुख़नी है

साक़ी तिरी आँखों में हैं दो-जाम छलकते
मय-ख़ाने की मस्ती तिरी आँखों में भरी है

फ़नकार ने जब अपना क़लम ग़म में डुबोया
तब जा के तिरे हुस्न की तस्वीर बनी है

जब चाहा तुझे देख लिया जान-ए-तमन्ना
ग़म-ख़ाना-ए-दिल में तिरी तस्वीर जुड़ी है

क्यों सुब्ह नहीं होती मिरी शाम-ए-अलम की
क्यों ज़ीस्त मिरी मौत के साँचे में ढली है

जिस वक़्त नज़र आया तिरी ज़ुल्फ़ का साया
उस वक़्त कहा दिल ने यहाँ छाँव घनी है

तौहीन न कर इस की इसे कह ले मय-ए-नाब
नासेह मिरे साग़र में तो शीशे की परी है

ये वक़्त-ए-जवानी है गँवा इस को न 'हमदम'
नादान इबारत के लिए उम्र पड़ी है
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Baldev singh Hamdam
अगर हैं ख़ार-ए-अलम आदमी के दामन में
ख़ुशी के फूल भी तो हैं उसी के दामन में

हज़ार ऐश सही ज़िंदगी के दामन में
मगर है सब्र कहाँ आदमी के दामन में

अगर सुकूँ है तो है बंदगी के दामन में
मिलेगी मंज़िल-ए-इरफ़ाँ उसी के दामन में

किसी की याद में आँसू जो आँख से टपके
जवाहरात हैं ये आशिक़ी के दामन में

कमाल-ए-ज़ब्त यही है वक़ार-ए-इश्क़ यही
छुपी हो आरज़ू-ए-दिल ख़ुदी के दामन में

हदीस-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत का तर्जुमाँ जो हो
अदब के फूल खिले हैं उसी के दामन में

ब-चश्म-ए-ग़ौर जो देखो तो और भी कुछ है
फ़क़त गुनाह नहीं आदमी के दामन में

अजल हज़ार बुरी चीज़ है मगर हमदम
पनाह मिलती है आख़िर उसी के दामन में
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