देश में प्रतिभा की इतनी दुर्दशाएँ थीं नहीं
वो वहाँ पहुँचे जहाँ की योग्यताएँ थीं नहीं
बोल सकता ही नहीं था जब कोई उसके ख़िलाफ़
फिर किसी गतिरोध की सम्भावनाएँ थीं नहीं
इनको पढ़ कर और सुन कर इन पे होता था अमल
जब किताबों तक ही सीमित ये ऋचाएँ थीं नहीं
फूल खिलते थे कभी विश्वास के चारों तरफ़
व्यक्ति की इतनी तो दूषित भावनाएँ थीं नहीं
वास्तविकता जान पाए हो के हम तुमसे अलग
आज तक इतनी हमारी यातनाएँ थीं नहीं
ग़ौर से सुनते थे हम सब दूसरों की बात को
आदमी के मन में जब अवहेलनाएँ थीं नहीं
पी लिया करते थे पानी बाघ बकरी साथ में
यानी गाँवों में कभी शहरी हवाएँ थीं नहीं
कुछ न कुछ तो पाप धरती पर हमेशा ही रहा
हाँ मगर इतनी नज़र में वासनाएँ थीं नहीं
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