Gauhar Shaikh Purwi

Gauhar Shaikh Purwi

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Gauhar Shaikh Purwi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Gauhar Shaikh Purwi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
रोज़ दिल को मिरे इक ज़ख़्म नया देते हैं
आप क्या अपना बनाने की सज़ा देते हैं

मेरी बेताबी-ए-दिल का जो उड़ाते हैं मज़ाक़
वो भड़कते हुए शो'लों को हवा देते हैं

लोग कहते हैं जिसे ज़र्फ़ वो अपना है मिज़ाज
अपने दुश्मन से भी हम प्यार जता देते हैं

कोई आवाज़ नहीं होती भरे बर्तन से
और ख़ाली हों तो हर गाम सदा देते हैं

देख कर मेरे नशेमन से धुआँ उठता हुआ
सूखे पत्ते भी दरख़्तों के हवा देते हैं

ज़ख़्म-ए-दिल चाँद की मानिंद चमकते हैं मिरे
आप जब भूली हुई बात सुना देते हैं

आप चुप-चाप ही आते हैं तसव्वुर में मगर
मेरे ख़्वाबीदा ख़यालों को जगा देते हैं

सिर्फ़ इक देवता समझा है तुम्हें मैं ने मगर
लोग पत्थर को भी भगवान बना देते हैं

कच्ची दीवार की मानिंद हैं हम ऐ 'गौहर'
एक ठोकर से जिसे लोग गिरा देते हैं
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Gauhar Shaikh Purwi
दुनिया की जो ख़ुशी थी वो ग़म से बदल गई
शायद हयात इश्क़ के साँचे में ढल गई

दुनिया फिरी फिरी है तुम्हारी नज़र के साथ
तुम क्या बदल गए कि ख़ुदाई बदल गई

रुख़ बिजलियों ने मोड़ लिया सू-ए-आशियाँ
आई हुई बला मिरे गुलशन से टल गई

दी है किसी की याद ने दस्तक कुछ इस तरह
जैसे सबा क़रीब से आ कर निकल गई

मेरी ख़ुशी की बात का अब पूछना ही क्या
मेरी हर इक ख़ुशी तो तिरे ग़म में ढल गई

जिस शय को तुम ने देख लिया इल्तिफ़ात से
वो शय तुम्हारे हुस्न के साँचे में ढल गई

वो ख़ैरियत के वास्ते आएँगे घर मिरे
शायद इसी सबब से तबीअत सँभल गई

कितना क़वी जुनूँ का है रिश्ता बहार से
जब भी बहार आई तबीअत मचल गई

दुनिया को ख़ुश जो देखा तो मैं मुस्कुरा उठा
दुनिया ने जब ख़ुशी मिरी देखी तो जल गई

'गौहर' गिराँ है मेरी तबीअत पे कैफ़-ओ-रंग
हाँ देख कर ख़िज़ाँ को तबीअ'त बहल गई
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Gauhar Shaikh Purwi
बदला हुआ दुनिया का चलन देख रहा हूँ
तहज़ीब के माथे पे शिकन देख रहा हूँ

तू ने जो गिरा लीं रुख़-ए-पुर-नूर पे ज़ुल्फ़ें
सूरज के भी चेहरे पे गहन देख रहा हूँ

वो मुझ से वफ़ाओं की सनद माँग रहे हैं
मैं जिन को यहाँ अहद-शिकन देख रहा हूँ

फूलों में न पहली सी वो ख़ुशबू है न वो रंग
भौँरों को गिरफ़्तार-ए-मेहन देख रहा हूँ

जिस अह्द में फ़नकार की इज़्ज़त नहीं बाक़ी
मैं आज वही दौर-ए-फ़ितन देख रहा हूँ

सहरा हो कि गुलज़ार गिरा देता है बिजली
क्या तौर तिरे चर्ख़-ए-कुहन देख रहा हूँ

अब रिंद भी ऐसे में बदल जाएँ तो बेहतर
बदला हुआ साक़ी का चलन देख रहा हूँ

अतवार ज़माने के अजब हो गए 'गौहर'
इस्मत की कलाई में रसन देख रहा हूँ
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Gauhar Shaikh Purwi
हम आज बहुत उन को ख़फ़ा देख रहे हैं
ऐ शोख़ी-ए-तक़दीर ये क्या देख रहे हैं

ये आप की पुर्सिश का मिला है हमें इनआ'म
कुछ दर्द-ए-मोहब्बत को सिवा देख रहे हैं

पहचान में आते नहीं पहचाने हुए लोग
बदली हुई दुनिया की हवा देख रहे हैं

हम अम्न के घर में हैं मगर ये भी तो सच है
मंडलाती हुई सर पे क़ज़ा देख रहे हैं

कुछ और सिवा हो गईं बे-ताबियाँ दिल की
क्या ख़ूब ये तासीर-ए-दुआ देख रहे हैं

हर सम्त अंधेरा है अंधेरा है अंधेरा
फैली हुई ज़ुल्फ़ों की घटा देख रहे हैं

कुछ कम नहीं ये शैख़-ओ-बरहमन की करामात
हम गोश्त से नाख़ुन को जुदा देख रहे हैं

लग जाएगा सूरज को गहन आज यक़ीनन
रुख़ को तिरे ज़ुल्फ़ों से घिरा देख रहे हैं

ये बात रहे पेश-ए-नज़र आप के 'गौहर'
अब रंग-ए-ग़ज़ल लोग नया देख रहे हैं
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Gauhar Shaikh Purwi
हम जो सारे जहान वाले हैं
गुम-शुदा दास्तान वाले हैं

क्यों न बरसात में हों खौफ़ज़दा
वो जो कच्चे मकान वाले हैं

हम ग़रीबों से क्यों नहीं मिलते
क्या वो ऊँची उड़ान वाले हैं

टूटी क़ब्रों से आ रही है सदा
बे-निशाँ भी निशान वाले हैं

हम को शोकेस में सजा लेंगे
जब वो ऊँची दूकान वाले हैं

राह में वो भटक नहीं सकते
जो बड़ी आन बान वाले हैं

मौत से भी कहीं नहीं डरते
हम बड़ी सख़्त जान वाले हैं

बंद कमरे में रह नहीं सकते
हम खुले साएबान वाले हैं

ऊँचे महलों पे नाज़ क्यों है तुम्हें
हम भी तो आसमान वाले हैं

सोच कर कोई गुफ़्तुगू कीजिए
दर-ओ-दीवार कान वाले हैं

प्यार शेवा हमारा है 'गौहर'
हम भी हिन्दोस्तान वाले हैं
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Gauhar Shaikh Purwi
इक पल भी कहीं राहत-ओ-आराम नहीं है
ये इश्क़ का आग़ाज़ है अंजाम नहीं है

डरता हूँ कि गर्दिश न ज़माने की ठहर जाए
अब हाथ में सूरज है मिरे जाम नहीं है

क्या लूट लिया रिंदों ने मय-ख़ाना ही सारा
या मेरी ही क़िस्मत में कोई जाम नहीं है

जिस पाप की दुनिया में है रावन का बसेरा
उस स्वर्ग सी धरती पे कोई राम नहीं है

मैं ने ही निखारा है तिरा रंग-ए-मोहब्बत
और मेरा तिरी बज़्म में कुछ काम नहीं है

तुम ने ही सितम ढाए हैं तुम ने ही जफ़ा की
मैं कैसे कहूँ तुम पे कुछ इल्ज़ाम नहीं है

सब कुछ है जब अपना ही तो मैं सोच रहा हूँ
इंसान को क्यों पहला सा आराम नहीं है

मेरे ही गुनाहों पे नज़र क्यों है जहाँ की
है कौन जो इस दौर में बदनाम नहीं है

हैरत है कि तू उस को नहीं जानता लेकिन
इस शहर में 'गौहर' कोई गुम-नाम नहीं है
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Gauhar Shaikh Purwi