Charkh Chinioti

Charkh Chinioti

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Charkh Chinioti shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Charkh Chinioti's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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जब सर-ए-बाम वो ख़ुर्शीद-जमाल आता है
ज़र्रे ज़र्रे पे क़यामत का जलाल आता है

फूल मुस्काते हैं लहराती है टहनी टहनी
फ़स्ल-ए-गुल आते ही हर शय पे जमाल आता है

वो जनम-दिन पे बुलाते हैं हमेशा मुझ को
हर नया साल ब-अंदाज़-ए-विसाल आता है

क्यूँ तिरे होंट मुझे देते हैं मंफ़ी में जवाब
मेरे होंटों पे ये रह रह के सवाल आता है

जब सवाली कोई आ जाता है दर पर तो मुझे
उस की बख़्शी हुई ने'मत का ख़याल आता है

उन के खिलते हुए जोबन को वो मुरझा न सका
आने को दौर-ए-ख़िज़ाँ साल-ब-साल आता है

मुझे जचती ही नहीं और किसी की सूरत
जब ख़याल आता है तेरा ही ख़याल आता है

तारे गिनवाती हैं फिर हिज्र की काली रातें
जब मुझे याद कोई ज़ोहरा-जमाल आता है

यूँ रुख़-ए-ज़र्द चमक उठता है आने पे तिरे
जैसे होली में कोई मल के गुलाल आता है

अपने हाथों के पले लोग जो हो जाएँ ख़िलाफ़
उन के अख़्लाक़ पे ऐ 'चर्ख़' मलाल आता है
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Charkh Chinioti
हम जो मिल बैठें तो यक-जान भी हो सकते हैं
पूरे अपने सभी अरमान भी हो सकते हैं

तुझ से इस तरह पे आ पहुँचा है रिश्ता अपना
बिन बुलाए तिरे मेहमान भी हो सकते हैं

हम तिरे नाम की जपते नहीं माला ही फ़क़त
हम तिरे नाम पे क़ुर्बान भी हो सकते हैं

दिल में आने की भला आप को दावत मैं दूँ
घर के मालिक कभी मेहमान भी हो सकते हैं

बुत-ए-काफ़िर की परस्तिश पे कोई क़ैद नहीं
पूजने वाले मुसलमान भी हो सकते हैं

बे-रुख़ी तू ने भी बरती जो ख़ुदाया उन से
तुझ से बरहम तिरे इंसान भी हो सकते हैं

आज जो गर्दिश-ए-दौराँ का उड़ाते हैं मज़ाक़
कल वही लोग परेशान भी हो सकते हैं

तू जो समझे मिरे अरमानों की अहमिय्यत को
मेरे अरमाँ तिरे अरमान भी हो सकते हैं

जब ख़ता करते थे उस वक़्त न सोचा ऐ 'चर्ख़'
हम सर-ए-हश्र पशेमान भी हो सकते हैं
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Charkh Chinioti
अक़्ल हैरान है रहमत का तक़ाज़ा क्या है
दिल को तक़्सीर की तर्ग़ीब तमाशा क्या है

उन्हें जब ग़ौर से देखा तो न देखा उन को
मक़्सद उस पर्दे का इक दीदा-ए-बीना क्या है

हम शहादत का जुनूँ सर में लिए फिरते हैं
हम मुजाहिद हैं हमें मौत का खटका क्या है

उड़ता फिरता हूँ मैं सहरा में बगूले की तरह
कुछ नहीं इल्म मिरा मलजा-ओ-मावा क्या है

मेरा मंशा है कि दुनिया से किनारा कर लूँ
ऐ ग़म-ए-दोस्त बता तेरा इरादा क्या है

बात पुर-पेच हँसी लब पे शिकन माथे पर
दिल समझने से है क़ासिर ये मुअ'म्मा क्या है

जो तिरी ज़ुल्फ़ पे जा कर न खिले फूल वो क्या
जो न उलझे तिरे दामन से वो काँटा क्या है

एक खिलता हुआ गुलशन है तुम्हारा पैकर
तुम तबस्सुम ही तबस्सुम हो तुम्हारा क्या है

मैं ने इक बात जो पूछी तो बिगड़ कर बोले
बद-गुमानी के सिवा आप ने सीखा क्या है

वो फ़क़ीरों को नवाज़ें न नवाज़ें ऐ 'चर्ख़'
हम दुआ दे के चले आएँगे अपना क्या है
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Charkh Chinioti
हुस्न के जल्वे लुटाए तिरी रा'नाई ने
राज़ सब खोल दिए एक ही अंगड़ाई ने

रंग भर कर तिरी तस्वीर में जज़्ब-ए-ग़म का
अपनी तस्वीर बना दी तिरे सौदाई ने

वस्ल-ए-महबूब की तदबीर सुझाई मुझ को
हक़-परस्ती ने अक़ीदत ने जबीं-साई ने

हम ने सोचा था कि बुझ जाएँगे ग़म के शो'ले
आ के कुछ और हवा दी उन्हें पुर्वाई ने

शोरिश-ए-दहर ने बेगाना किया ख़ुद से मुझे
आगही बख़्शी मुझे गोशा-ए-तन्हाई ने

एक मा'सूम से चेहरे पे रऊनत की नुमूद
हाए क्या ज़ुल्म किया आलम-ए-बरनाई ने

गर्दिश-ए-वक़्त ने मयख़ाने में दम तोड़ दिया
जाने क्या चीज़ पिला दी तिरे सहबाई ने

रुख़ तमाशे का बदल डाला अचानक आ कर
एक ख़ुश-चेहरा ख़ुश-अंदाज़ तमाशाई ने

चर्ख़ आपस के तअ'ल्लुक़ का ये अंदाज़ भी देख
कर दिया उन को भी रुस्वा मिरी रुस्वाई ने
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Charkh Chinioti
क़रार खो के चले बे-क़रार हो के चले
अदा अदा पे तिरी हम निसार हो के चले

रह-ए-वफ़ा में रक़ाबत के मोड़ भी हैं बहुत
ये दिल से कह दो ज़रा होशियार हो के चले

किसी के कहने पे तूफ़ाँ में डाल दी कश्ती
ख़ुदा करे कि हवा साज़गार हो के चले

हमें तो नाज़ है अपने हसीं गुनाहों पर
वो लोग और थे जो शर्मसार हो के चले

तुम्हारी अम्बरीं ज़ुल्फ़ों को छू के आई है
हवा की मौज न क्यूँ मुश्क-बार हो के चले

वो जीते-जी तो न आए मिज़ाज-पुर्सी को
जनाज़ा देखा तो साथ अश्क-बार हो के चले

नज़र ने मिल के नज़र से मिला दिया हम को
ये रब्त-ए-बाहमी अब उस्तुवार हो के चले

वो अर्ज़-ए-वस्ल पे ख़ामोश हो के बैठ गए
न आर हो के चले वो न पार हो के चले

अज़ल से 'चर्ख़'-ए-तबीअ'त शगुफ़्ता है अपनी
जो मिलने आए वो बाग़-ओ-बहार हो के चले
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Charkh Chinioti
मचलेंगे उन के आने पे जज़्बात सैंकड़ों
हंस बोलने की होंगी हिकायात सैंकड़ों

मय्यत उठाने कोई भी आया न बा'द-ए-मर्ग
सुनते थे ज़िंदगी में मिरी बात सैंकड़ों

तुम थे तो ज़िंदगी का न कोई सवाल था
अब जन्म ले रहे हैं सवालात सैंकड़ों

क्यूँ उस निगाह-ए-मस्त की सब माँगते हैं ख़ैर
आबाद और भी हैं ख़राबात सैंकड़ों

चमके जो तेरे नूर से दिन-रात थे वही
आने को यूँ तो आए हैं दिन-रात सैंकड़ों

पर्दा-नवाज़ हुस्न के क़ुर्बान जाइए
इक इक हिजाब में हैं हिजाबात सैंकड़ों

वो बात कोई भी न कहेगा जो हम कहें
तुम जो कहो कहेंगे वही बात सैंकड़ों

करते हैं अर्ज़-ए-वस्ल पे हाँ-हूँ अजी नहीं
या'नी सवाल इक है जवाबात सैंकड़ों

बनते हैं ज़िंदगी के फ़साने उन्हीं से 'चर्ख़'
वो हैं तो ज़िंदगी की रिवायात सैंकड़ों
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Charkh Chinioti
बात कहने के लिए बात बनाई न गई
हम से बारात फ़रेबों की सजाई न गई

आज भी दार के तख़्ते से सदा आती है
हक़ की आवाज़ सितमगर से दबाई न गई

दोस्त करते हैं हसद इस लिए तेरी तस्वीर
मा-सिवा दिल के कहीं और सजाई न गई

ग़म की तस्वीर बनाने को मैं जब भी बैठा
उन की मुस्कान उभर आई बनाई न गई

नई तहज़ीब के ख़ाकों को सँवारा हम ने
हम से अख़्लाक़ की तस्वीर बनाई न गई

जाने क्या सूझी मिरी क़ब्र पर आ कर उन से
गुल चढ़ाए न गए शम्अ' जलाई न गई

मैं तो बात आई गई कर के चला आया था
हो गई बात पराई वो दबाई न गई

उस ने हंगामों से बहलाई है अपनी दुनिया
वक़्त से अम्न की शहनाई बजाई न गई

'चर्ख़' देखे जो जवानी के उभरते जल्वे
ज़िंदगी अपनी गुनाहों से बचाई न गई
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Charkh Chinioti
बज़्म-ए-जानाँ में मोहब्बत का असर देखेंगे
किस से मिलती है नज़र उन की नज़र देखेंगे

अब न पलकों पे टिको टूट के बरसो अश्को
उन का कहना है कि हम दीदा-ए-तर देखेंगे

धड़कनो तेज़ चलो डूबती नब्ज़ो उभरो
आज वो बुझते चराग़ों की सहर देखेंगे

ऐ मिरे दिल के सुलगते हुए दाग़ो भड़को
हिज्र की रात वो जलता हुआ घर देखेंगे

तेरे दर से हमें ख़ैरात मिले या न मिले
हम तिरे दर के सिवा कोई न दर देखेंगे

मय-कदे झूमेंगे बरसेगी जवानी की शराब
वो छलकती हुई नज़रों से जिधर देखेंगे

उन की नज़रों से है वाबस्ता ज़माने की नज़र
वो जिधर देखेंगे सब लोग उधर देखेंगे

आज माज़ी के फ़साने वो सुनेंगे ऐ 'चर्ख़'
मेरी बर्बाद उमीदों के खंडर देखेंगे
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Charkh Chinioti
बे-ख़ुदी में है न वो पी कर सँभल जाने में है
लुत्फ़ पा-ए-यार पर जो लग़्ज़िशें खाने में है

तेरे वा'दे तेरी यादें तेरे नग़्मे तेरे ख़्वाब
हुस्न से भरपूर दौलत मेरे काशाने में है

साग़र-ओ-मीना में लहराती है हर मौज-ए-शराब
इक जवानी का तलातुम आज मयख़ाने में है

बज़्म-ए-दुनिया में हैं हुस्न-ओ-इश्क़ यूँ जल्वा-नुमा
रौशनी है शम्अ' में तो सोज़ परवाने में है

मय की इक इक बूँद से तूफ़ान-ए-मस्ती है अयाँ
किस की मय-बार अँखड़ियों का अक्स पैमाने में है

नूर की बारिश अभी होने दे थोड़ी देर और
इक ज़रा सी देर ही तो रात ढल जाने में है

लाख फ़ितरत ने दिखाई बर्क़ की चश्मक-ज़नी
उस में वो शोख़ी कहाँ जो तेरे शरमाने में है

जान भी दिल भी जिगर भी आरज़ू-ए-वस्ल भी
उन के पेश अपना सभी कुछ आज नज़राने में है

मय उभर कर जाम में अंगड़ाइयाँ लेने लगी
कैसा मद्द-ओ-जज़्र साक़ी तेरे मयख़ाने में है

'चर्ख़' मैं ना-आश्ना हूँ हिज्र के माहौल से
वस्ल का रंगीन पहलू मेरे अफ़्साने में है
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Charkh Chinioti
जो आँसुओं को न चमकाए वो ख़ुशी क्या है
न आए मौत पे ग़ालिब तो ज़िंदगी क्या है

हमें ख़बर है न अपनी न अहल-ए-दुनिया की
कोई बताए ये अंदाज़-ए-बे-ख़ुदी क्या है

मैं साथ देता हूँ यारों का हद्द-ए-मंज़िल तक
मैं जानता नहीं दस्तूर-ए-रह-रवी क्या है

तिरे ख़याल में दिन-रात मस्त रहता हूँ
ये बंदगी जो नहीं है तो बंदगी क्या है

तिरे करम से मयस्सर है दौलत-ए-कौनैन
तिरा करम है जभी तक मुझे कमी क्या है

नए पुराने नशेमन सभी जला कर अब
निगाह-ए-बर्क़ खड़ी दूर ताकती क्या है

किसी की चश्म-ए-करम आप पर नहीं तो क्यूँ
ये ख़ुद से पोछिए किरदार में कमी क्या है

न आई जागती आँखों के दाएरे में कभी
ये बद-नसीब का इक ख़्वाब है ख़ुशी क्या है

जो बात कहता हूँ करते हैं उस पे हर्फ़-ज़नी
ये दोस्ती है तो अंदाज़-ए-दुश्मनी क्या है

क़दम क़दम पे किए 'चर्ख़' ज़िंदगी ने मज़ाक़
समझ में आ न सका क़स्द-ए-ज़िंदगी क्या है
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