Kailash Guru Swami

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Kailash Guru Swami shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Kailash Guru Swami's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
ग़म ज़माने से छुपाना ही पड़ा
रोते रोते मुस्कुराना ही पड़ा

दिल को दिल से भी बचाना ही पड़ा
ये भी ग़म मुझ को उठाना ही पड़ा

साज़िशी तिरछी नज़र थी क्या कहें
चोट खा कर मुस्कुराना ही पड़ा

पी सभी ने मैं ही तिश्ना था मगर
साथ उन के लड़खड़ाना ही पड़ा

उन की रुस्वाई ने जब घेरा मुझे
मुझ को उन से दूर जाना ही पड़ा

ज़िंदगी को और कब तक झेलता
मौत से पंजा लड़ाना ही पड़ा

आँसूओं ने इस तरह तरतीब दी
ग़म का हर क़िस्सा सुनाना ही पड़ा

इंतिहा-ए-इश्क़ में खाए फ़रेब
चाह कर भी भूल जाना ही पड़ा

तीरगी थी और उन की याद थी
दिल को ऐसे में जलाना ही पड़ा

हाल-ए-दिल उन से छुपाते कब तलक
राज़ उल्फ़त का बताना ही पड़ा

'स्वामी' उन की ज़िद के आगे झुक गए
बिजलियों पर घर बनाना ही पड़ा
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Kailash Guru Swami
दिल पर जो तिरी याद का पहरा नहीं होता
सागर की तरह ज़ख़्म भी गहरा नहीं होता

ख़्वाबों का बहुत देखना अच्छा नहीं होता
हर ख़्वाब यक़ीनन कभी सच्चा नहीं होता

मर्ज़ी है मिरी जिस को भी चाहूँ उसे देखूँ
आँखों पे किसी ज़ात का पहरा नहीं होता

लिल्लाह तबीबों को दिखाते हो मुझे क्यों
इस टूटे हुए दिल का मुदावा नहीं होता

निकला है कहाँ रेत में तू प्यास बुझाने
सहरा में जो दिखता है वो दरिया नहीं होता

होंटों को नुजूमी के जो सीना है तो सी दो
तक़दीर का लिक्खा कभी झूटा नहीं होता

कोई न अगर छीनता बच्चे का निवाला
वो पेट पकड़ कर कभी सोया नहीं होता

'स्वामी' ज़रा सूरज को समुंदर से निकालो
थक-हार के यूँ डूबना अच्छा नहीं होता
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Kailash Guru Swami
ठिकाना हो न हो फिर भी ठिकाना ढूँड लेते हैं
क़फ़स में रह के भी हम आशियाना ढूँड लेते हैं

किताब-ए-दिल में वो ग़म को छुपा लेंगे तो क्या होगा
मगर हम दर्द-ओ-ग़म का हर ख़ज़ाना ढूँड लेते हैं

कभी उन को सहारे की ज़रूरत ही नहीं पड़ती
परिंदे ख़ुद-ब-ख़ुद अपना ठिकाना ढूँड लेते हैं

ज़माने की नज़र में क़तरा-ए-शबनम सही लेकिन
कुछ ऐसे हैं जो अश्कों में फ़साना ढूँड लेते हैं

ग़िज़ा हंसों को मोती की कोई ला कर नहीं देता
वो ख़ुद सीपों के अंदर अपना दाना ढूँड लेते हैं

मिरी तन्हाइयों का ज़िक्र जब उन तक नहीं पहुँचा
तो किस की रहबरी से वो ठिकाना ढूँड लेते हैं

जब उन का नाम अपनी रूह में गुदवा लिया 'स्वामी'
तो फिर क्यों तर्क-ए-उल्फ़त का बहाना ढूँड लेते हैं
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