तुम्हारा ज़िक्र अगर छेड़ दु फसाने में
इज़ाफ़ा होता रहेगा मिरे खज़ामे में
कोई भी तीर नहीं लग रहा निशाने पर
कोई न कोई खराबी हैं इस निशाने में
ख़याल आते हैं , मज़मून बांध जाते हैं
ग़ज़ल पनपती हैं मिसरे को गुनगुनाने में
तमाम काम सहूलत से हो रहे हैं दोस्त
लगा दी हैं तिरी तस्वीर कारखाने में
अभी तो फ़ोन से नंबर नहीं मिटाया हैं
अभी तो वक़्त लगेगा उसे भुलाने में
सुना था सात बशर एक जैसे होते हैं
मगर वो यकता नज़र आता हैं ज़माने में
तिरा मिज़ाज़ भी थोड़ा सा तल्ख़ लगता हैं
नमक भी ज़ादा पड़ा आज तुझसे खाने में
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