रात भर करते रहे उनसे 'शजर' प्यार की बात
और वो करते रहे तीर की तलवार की बात
आज ये बज़्म थी क़ुर्बत को बनाने के लिए
कौन ये बीच में ले आया है दीवार की बात
छोड़कर सिर्फ़ मेरी बात वो अफ़राद मियाँ
मान लेता है गज़ब देखिए संसार की बात
बज़्म-ए-शो'रा में हर इक लम्हा मेरी जान-ए-वफ़ा
चलती रहती है तेरे ही रुख़-ए-अनवार की बात
वो मेरा यार है जो कहता है कहने दे उसे
काट दूँ कैसे भरी बज़्म में मैं यार की बात
ख़ौफ़ आता है यूँ इज़हार-ए-मोहब्बत से मुझे
फैल जाए न कहीं शहर में इज़हार की बात
वक़्त क्यूँ ज़ाया करूँ आपसे बाते कर के
आप कर ही नहीं सकते मेरे मेयार की बात
मक़तल-ए-इश्क़ में शहज़ाद-ए-शहर जीत गया
मत करो यार मेरे सामने बेकार की बात
दिल मेरे सीने में ज़ोरो से धड़क उठता है
गर मेरे ज़हन में आए तेरे दीदार की बात
शहर-ए-ना-पुरसाँ में किस से कहूँ रूदाद बता
कोई सुनता ही नहीं हैं यहाँ नादार की बात
यार जिस रोज़ से आया हूँ तेरी सोहबत में
हर जगह होने लगी है मेरे किरदार की बात
राय साहब हो हनी हो के हो अकबर या ख़ुदा
बस 'शजर' मानता है सिर्फ़ इन्हीं चार की बात
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