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चश्म-तर को फिर हमसफ़र याद आया - Shayar Bakar Gunjan Nagar

चश्म-तर को फिर हमसफ़र याद आया
भूलना चाहा वो मगर याद आया

ये बता दो चश्म-ओ-नज़र में बसा कौन
जिस तरफ़ देखा वो उधर याद आया

दर्द में भी महबे-वफ़ा रहता था मैं
ज़हर का फिर मुझ पे असर याद आया

दावते मिज़्गां हो रही याद में फिर
हम नज़र चाहा कम नज़र याद आया

बेहिजाबी की रस्म वो शौक तेरे
बेहया को फिर दरगुज़र याद आया

आशियाँ छोड़ा था जहां जीतने को
क्यूँ बे घर को फिर मुश्तक़र याद आया

आग पानी मिलते नहीं कहता था वो
आशना को फिर हम शजर याद आया

ख़ुद बना के वो तोड़ देता है तब तब
आइनागर को जब हजर याद आया

बेनियाज़ी उसकी इधर भी उधर भी
बा शकर को फिर क्यूँ बकर याद आया

- Shayar Bakar Gunjan Nagar

Yaad Shayari

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