न पलकें झुकाओ न नज़रें चुराओ
निगाहों से मेरी निगाहें मिलाओ
इशारों इशारों में क्या कह रहे हो
लबों को दो जुम्बिश ज़बाँ तो हिलाओ
सितम कर रही हैं ये उन की अदाएँ
मिरे रब हसीनों से हम को बचाओ
ग़म-ए-ज़िंदगी ज़िंदगी भर रहेगा
इसे भूल कर तुम ज़रा मुस्कुराओ
जो पहले हुआ था वही हो रहा है
सियासत कि ख़ातिर हमें न लड़ाओ
ये अहल-ए-जहाँ से बयाँ कर दो 'अहज़म'
बिखेरो मोहब्बत ये नफ़रत मिटाओ
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