शिकवा-ए-कसरत-ए-बेदाद करूँ या न करूँ
ख़ातिर-ए-हुस्न को नाशाद करूँ या न करूँ
दिल-ए-बर्बाद को आबाद करूँ या न करूँ
सोचता हूँ कि तुझे याद करूँ या न करूँ
आसमाँ मुझ से हिरासाँ ही रहा करता है
ख़्वाह मैं नाला-ओ-फ़रियाद करूँ या न करूँ
ख़ुद भी सय्याद परेशाँ है मुझे कर के असीर
सोचता है इसे आज़ाद करूँ या न करूँ
जौर-ए-गुलचीं है कि बढ़ता ही चला जाता है
जौर-ए-गुलचीं पे मैं फ़रियाद करूँ या न करूँ
मौसम-ए-गुल की हसीं शाम है मय-ख़ाना-ब-दोश
साक़ी ऐसे में तुझे याद करूँ या न करूँ
ज़िंदगी कैफ़-ब-दामाँ थी मिरी जब 'अख़्तर'
अब वो बीते हुए दिन याद करूँ या न करूँ
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