Akhtar Madhupuri

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@akhtar-madhupuri

Akhtar Madhupuri shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Akhtar Madhupuri's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
यूँ जो खुलता है ज़माने का भरम अच्छा है
हम पे होते हैं ज़माने के सितम अच्छा है

वो क़दम क्या जो तजस्सुस में रहे मंज़िल के
बढ़ के ख़ुद चूम ले मंज़िल वो क़दम अच्छा है

है तमन्ना-ए-असीरी तो कभी इस में उलझ
गेसू-ए-वक़्त का पेच अच्छा है ख़म अच्छा है

अम्न-ओ-इंसाफ़-ओ-मुसावात की ख़ातिर लोगो
तुम उठाओ जो बग़ावत का अलम अच्छा है

क़तरे मिलते हैं तो वो होते हैं दरिया में शुमार
हम मिला कर जो चलें अपने क़दम अच्छा है

शीशा-ए-दिल में तो है दोस्त के इरफ़ाँ की शराब
शीशा-ए-दिल से कहाँ साग़र-ओ-जम अच्छा है

मिल के कुछ करने का अब आया है वक़्त ऐ यारो
जिस क़दर हम में रहे फ़ासला कम अच्छा है

'अख़्तर' आ कर चमन-ए-गंग-ओ-जमन को देखे
जो ये कहता है कि गुलज़ार-ए-इरम अच्छा है
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Akhtar Madhupuri
जहान-ए-बे-सबाती में तमाशा-ए-जहाँ कब तक
चमकते मेहर-ओ-मह तारे ज़मीन-ओ-आसमाँ कब तक

शब-ए-ग़म में तजल्ली पर न इतरा ऐ दिल-ए-मुज़्तर
सितारों की ये चश्मक और रक़्स-ए-कहकशाँ कब तक

समुंदर की ख़मोशी एक तूफ़ाँ साथ लाएगी
किसी ना-मेहरबाँ की ये निगाह-ए-मेहरबाँ कब तक

बढ़ाए जा क़दम तू बढ़ के सरगर्म-ए-अमल हो जा
यूँही तकता रहेगा सू-ए-गर्द-ए-कारवाँ कब तक

लगा कर आग ख़ुद ही क्यों न बद-बख़्ती पे मैं रो लूँ
जलाएँ आशियाँ को मेरे आख़िर बिजलियाँ कब तक

ये बेहतर है फ़लक होना है जो कुछ अब वो हो जाए
रहूँ तेरी बला-ए-ना-गहाँ के दरमियाँ कब तक

कमाल-ए-ज़ब्त पर भी अश्क-ए-ग़म आँखों से बह निकले
भला रोके से रुक सकती थी ये सैल-ए-रवाँ कब तक

फ़ज़ा-ए-ज़ीस्त पर तारी है 'अख़्तर' यास का आलम
न जाने मतला-ए-उम्मीद होगा ज़रफ़िशाँ कब तक
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Akhtar Madhupuri
मुझे दिन-रात फ़िक्र-ए-आशियाँ मालूम होती है
कि बरगश्ता निगाह-ए-बाग़बाँ मालूम होती है

जो दिल आज़ाद हो तो हर जगह हासिल है आज़ादी
क़फ़स में भी बहार-ए-गुल्सिताँ मालूम होती है

पए-गुल-गश्त शायद आज वो जान-ए-बहार आया
चमन की पत्ती पत्ती गुल्सिताँ मालूम होती है

उजड़ती आ रही है मुद्दतों से देखिए फिर भी
बहार-ए-बाग़-ए-आलम बे-ख़िज़ाँ मालूम होती है

तबस्सुम उन के होंटों पर तड़प है मेरे सीने में
कहाँ बिजली चमकती है कहाँ मालूम होती है

शफ़क़ फूली हुई है हर तरफ़ ख़ून-ए-शहीदाँ की
ज़मीन-ए-कू-ए-क़ातिल आसमाँ मालूम होती है

किसी की अंजुमन में मुझ पे ये पाबंदियाँ 'अख़्तर'
ज़रा सी बात पर कटती ज़बाँ मालूम होती है
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