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पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में - Bashir Badr

पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में
शायद पानी नहीं रहा है अब प्यासे दरियाओं में

जिस बादल की आस में जोड़े खोल लिए हैं सुहागन ने
वो पर्बत से टकरा कर बरस चुका सहराओं में

जाने कब तड़पे और चमके सूनी रात को फिर डस जाए
मुझ को एक रुपहली नागिन बैठी मिली है घटाओं में

पत्ता तो आख़िर पत्ता था गुंजान घने दरख़्तों ने
ज़मीं को तन्हा छोड़ दिया है इतनी तेज़ हवाओं में

दिन भर धूप की तरह से हम छाए रहते हैं दुनिया पर
रात हुई तो सिमट के आ जाते हैं दिल की गुफाओं में

खड़े हुए जो साहिल पर तो दिल में पलकें भीग गईं
शायद आँसू छुपे हुए हों सुब्ह की नर्म हवाओं में

ग़ज़ल के मंदिर में दीवाना मूरत रख कर चला गया
कौन उसे पहले पूजेगा बहस चली देवताओं में

- Bashir Badr

Hawa Shayari

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