हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से

  - Mirza Ghalib

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से
मेरी रफ़्तार से भागे है बयाबाँ मुझ से

दर्स-ए-उनवान-ए-तमाशा ब-तग़ाफ़ुल ख़ुश-तर
है निगह रिश्ता-ए-शीराज़ा-ए-मिज़्गाँ मुझ से

वहशत-ए-आतिश-ए-दिल से शब-ए-तन्हाई में
सूरत-ए-दूद रहा साया गुरेज़ाँ मुझ से

ग़म-ए-उश्शाक़ न हो सादगी-आमोज़-ए-बुताँ
किस क़दर ख़ाना-ए-आईना है वीराँ मुझ से

असर-ए-आबला से जादा-ए-सहरा-ए-जुनूँ
सूरत-ए-रिश्ता-ए-गौहर है चराग़ाँ मुझ से

बे-ख़ुदी बिस्तर-ए-तम्हीद-ए-फ़राग़त हो जो
पुर है साए की तरह मेरा शबिस्ताँ मुझ से

शौक़-ए-दीदार में गर तू मुझे गर्दन मारे
हो निगह मिस्ल-ए-गुल-ए-शमा परेशाँ मुझ से

बेकसी-हा-ए-शब-ए-हिज्र की वहशत है है
साया ख़ुर्शीद-ए-क़यामत में है पिन्हाँ मुझ से

गर्दिश-ए-साग़र-ए-सद-जल्वा-ए-रंगीं तुझ से
आइना-दारी-ए-यक-दीदा-ए-हैराँ मुझ से

निगह-ए-गर्म से एक आग टपकती है 'असद'
है चराग़ाँ ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-गुलिस्ताँ मुझ से

बस्तन-ए-अहद-ए-मोहब्बत हमा नादानी था
चश्म-ए-नकुशूदा रहा उक़्दा-ए-पैमाँ मुझ से

आतिश-अफ़रोज़ी-ए-यक-शोला-ए-ईमा तुझ से
चश्मक-आराई-ए-सद-शहर चराग़ाँ मुझ से

  - Mirza Ghalib

Aag Shayari

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