ख़ुशी से दंग करना है करो फिर ये कहानी में
गिरा दो ग़ैर से पहनी अँगूठी तेज़ पानी में
तिरी इक मौज पे होके नज़र है दूसरी पे गर
कमी आने का ख़तरा फिर रहेगा ही रवानी में
चमक में क़ाफिये की, रब्त ही तोड़ आये मिसरे से
भुगतना ही पड़ेगा खामियाज़ा फिर बयानी में
वो कहती है मुझे देखो, रहो चाहे ख़फ़ा मुझसे
मगर लहजा ये शामिल ही नहीं मेरी ज़बानी में
हमारी दास्तान-ए-इश्क़ को इक शे'र समझो तुम
अधूरापन जो बाकी था हुआ पूरा वो सानी में
निशानी छोड़ी है जिस शर्ट पे, महफूज़ नईं यूँ ही
बिताया हमने इक-इक पल है उसकी पासबानी में
अभी तक के सफ़र में जो बने हैं मील के पत्थर
न जाने होंगे भी हासिल हमें वो ज़िंदगानी में ?
परिंदा क़ैद में है तो सुनोगे चीख ही उसकी
तराना ख़ुशनुमा याद आए कैसे राइगानी में
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