ग़ैरों पर वो जवानी लुटाते रहे
उम्रभर हमको पागल बनाते रहे
एक तो नींद ने भी किनारा किया
और शिद्दत से वो याद आते रहे
उनकी ख़ातिर फ़ना करदी है ज़िंदगी
धीरे-धीरे हमें वो भुलाते रहे
हमने रो रो के सब उम्र ये काट दी
आग दिल में लगी थी बुझाते रहे
बीच मझधार में हमको तन्हा किया
हम मोहब्बत की मय्यत उठाते रहे
उसने वादा कोई भी निभाया नहीं
और हम अपना वादा निभाते रहे
बे-वफ़ा तुमको लिख तो दिया था, मगर
देर तक हाथ ये कप-कपाते रहे
कितने नाज़ों से हमने तुम्हें चाहा था
बस उसी का ये ग़म हम मनाते रहे
उसकी डोली कोई और ही ले गया
हम तो परदेश में ही कमाते रहे
रिंद बनके गया उनके ही शहर में
वो ये सब देख कर मुस्कुराते रहे
वक़्त-ए-रुख़्सत हमें मुड़ के देखा नहीं
देर तक हाथ हम तो हिलाते रहे
Read Full