Aish Meeruthi

Aish Meeruthi

@aish-meeruthi

Aish Meeruthi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Aish Meeruthi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
कुछ ऐसे की है अदा रस्म-ए-बंदगी मैं ने
गुज़ार दी तिरे वा'दे पे ज़िंदगी मैं ने

उड़ा के धज्जियाँ दामन की करता क्यों रुस्वा
जुनूँ में की न गवारा दरिंदगी मैं ने

ज़रा भी शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा नहीं लब पर
तिरी रज़ा को जो समझा है बंदगी मैं ने

अज़ीज़ जान से ज़्यादा मुझे है ये ग़म दोस्त
कि ग़म में पाई है इक शरह-ए-ज़िंदगी मैं ने

हुज़ूर-ए-हुस्न हुआ है ये वाक़िआ' अक्सर
हवास-ओ-होश की देखी परिंदगी मैं ने

ज़िया-ए-मेहर-ए-हिदायत की ताबिशें ले कर
जला दी कुफ़्र-ओ-ज़लालत की गंदगी मैं ने

मिसाल-ए-लाला-ओ-सहरा सहम सहम के रहा
हुजूम-ए-ख़ार में काटी है ज़िंदगी मैं ने

लगाएँ कुफ़्र के फ़तवे हज़ार अहल-ए-ख़िरद
किया है पेश-ए-सनम अहद-ए-बंदगी मैं ने

न मिलने पर भी उसे 'ऐश' प्यार करता हूँ
यूँ ऊँचा कर दिया मेआ'र-ए-ज़िंदगी मैं ने
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Aish Meeruthi
बरबाद-ए-मोहब्बत हो कर भी जीने का सहारा हो न सका
इक दिल पे भरोसा था अपने वो भी तो हमारा हो न सका

जलवों की फ़रावानी तौबा दम भर में हुईं ख़ीरा नज़रें
वो सामने बे-पर्दा थे मगर हम से ही नज़ारा हो न सका

आँखों की ज़बानी शिकवा-ए-ग़म करना था बहुत उन से लेकिन
ख़ुद हुस्न पशेमाँ हो जाता ये हम से गवारा हो न सका

माना कि भरी महफ़िल थी मगर काफ़ी थी मुझे दुज़्दीदा नज़र
तस्कीन-ए-दिल-ए-मुज़तर के लिए इतना सा इशारा हो न सका

ग़ैरों की तरह मुँह तकते रहे हर एक का हम इस महफ़िल में
आँखों में छलक आए आँसू फिर ज़ब्त का यारा हो न सका

आई जो इधर मौज-ए-तूफ़ाँ कश्ती थी शिकस्ता डूब गई
अफ़्सोस पयाम-ए-आफ़िय्यत दरिया में किनारा हो न सका

हर बज़्म-ए-नशात ऐ 'ऐश' हुई उस शोख़ के जलवों से रौशन
काशाना-ए-ग़म में जल्वा-फ़गन लेकिन वो दिल-आरा हो न सका
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Aish Meeruthi
हर नफ़स आईना मौज-ए-फ़ना होता है
आह करता हूँ तो दर्द और सिवा होता है

खिंचती जाती है उसी सम्त जबीन-ए-सज्दा
जिस तरफ़ आप का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा होता है

फूट जा आबला-ए-पा कि बढ़े तेरा वक़ार
ख़ार-ए-सहरा तुझे अंगुश्त-नुमा होता है

जुन्बिशें होने लगीं पर्दा-ए-ज़ंगारी में
नाला-ए-आशिक़-ए-दिल-गीर बला होता है

वो न आएँगे उन्हें ज़िद है तमन्ना से मिरी
मैं कहूँ लाख तो क्या मेरा कहा होता है

है जबीं ख़ाक पे और अर्श-ए-मुअ'ल्ला पे दिमाग़
नक़्शा आँखों में तिरे दर का खिंचा होता है

साइल आया है तिरे दर पे ख़ुदी को खो कर
देखना है मुझे क्या आज अता होता है

हर रविश उन की क़यामत है क़यामत ऐ 'ऐश'
जिस तरफ़ जाते हैं इक हश्र बपा होता है
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Aish Meeruthi
ये गुल भी ज़ीनत-ए-आग़ोश-ए-दरिया-ए-क़ज़ा निकले
जिन्हें हम बा-वफ़ा समझे थे वो भी बेवफ़ा निकले

नतीजा जुस्तुजू-ए-शौक़ का क्या जाने क्या निकले
पस-ए-पर्दा ये मुमकिन है वही रंगीं-अदा निकले

करिश्मा है ये सारा इश्क़ का ही वर्ना कब मुमकिन
लहू के क़तरे क़तरे से अनल-हक़ की सदा निकले

मता-ए-ज़िंदगी आराम-ए-जाँ सब्र-ओ-क़रार-ए-दिल
ख़ुदा की शान है हम उन को क्या समझे वो क्या निकले

हुए मजरूह बर्ग-ए-गुल इन्हीं ख़ारों से गुलशन के
चमन के पासबाँ ही बानी-ए-जौर-ओ-जफ़ा निकले

मआ'ज़-अल्लाह इल्ज़ाम अपनी बर्बादी का ग़ैरों पर
डुबोने वाले कश्ती के जब अपने नाख़ुदा निकले

करूँ किस का गिला कहते हुए भी शर्म आती है
रक़ीब अफ़्सोस अपने ही पुराने आश्ना निकले

हमारे बाद वो आए अयादत को तो क्या आए
किसी के इस तरह निकले अगर अरमाँ तो क्या निकले

बहुत मुश्किल है 'ऐश' इस दौर में निकले कोई हसरत
ये क्या कम है कोई दामन अगर अपना बचा निकले
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Aish Meeruthi