Ajmal Ajmali

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Ajmal Ajmali shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ajmal Ajmali's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
ऐ हुस्न जब से राज़ तिरा पा गए हैं हम
हस्ती से अपनी और क़रीब आ गए हैं हम

यूँ भी हुआ कि जान गँवा दी तिरे लिए
यूँ भी हुआ कि तुझ से भी कतरा गए हैं हम

राह-ए-वफ़ा में ऐसे मक़ामात भी मिले
अपना सर-ए-नियाज़ भी ठुकरा गए हैं हम

यादश-ब-ख़ैर इक गुल-ए-शादाब थे कभी
ऐसी ख़िज़ाँ पड़ी है कि कुम्हला गए हैं हम

सुब्ह-ए-विसाल थी तो तबीअत थी बाग़ बाग़
शाम-ए-फ़िराक़ आई तो सँवला गए हैं हम

इंसान तेरी फ़तह पे अब भी यक़ीन है
गो अपनी ज़िंदगी से भी घबरा गए हैं हम

महरूमियों का बार-ए-गिराँ दोश पर लिए
ऐ मौत सुन कि तेरे क़रीब आ गए हैं हम

अपने सुबू में तलख़ी-दौराँ समेट कर
बा-सद-ख़ुलूस नोश भी फ़रमा गए हैं हम

तारीख़-ए-इन्क़िलाब-ए-ज़माना से पूछ लो
जब जब सदा मिली सर-ए-दार आ गए हैं हम

'अजमल' जब उन की बज़्म में छेड़ी है दिल की बात
अपने तो ख़ैर ग़ैर को तड़पा गए हैं हम
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आज़ार बहुत लज़्ज़त-ए-आज़ार बहुत है
दिल दस्त-ए-सितम-गर का तलबगार बहुत है

इक़रार की मंज़िल भी ज़रूर आएगी इक दिन
इस वक़्त तो बस लज़्ज़त-ए-इंकार बहुत है

यारान-ए-सफ़र कोई दवा ढूँड के लाओ
इंसान मिरे दौर का बीमार बहुत है

हाँ देखियो इरफ़ान-ए-बग़ावत न झुलस जाए
मंज़र मिरी दुनिया का शरर-बार बहुत है

हम घर की पनाहों से जो निकले तो ये जाना
हंगामा पस-ए-साया-ए-दीवार बहुत है

क़ातिल की इनायत का मज़ा और है वर्ना
जाँ लेने को ये साँस की तलवार बहुत है

क्या लोग हैं ये सोच के बैठे हूँ घरों में
बस ज़ुल्म से बे-ज़ारी का इज़हार बहुत है

हालात-ए-ज़माना से लरज़ जाते हैं 'अजमल'
यूँ है कि ज़माने से हमें प्यार बहुत है
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रास्ते के पेच-ओ-ख़म क्या शय हैं सोचा ही नहीं
हम सफ़र पर जब से निकले मुड़ के देखा ही नहीं

दो घड़ी रुक कर ठहर कर सोचते मंज़िल की बात
रास्ते में कोई ऐसा मोड़ आया ही नहीं

ज़िंदगी के साथ हम निकले थे ले कर कितने ख़्वाब
ज़िंदगी भी ख़त्म है मौसम बदलता ही नहीं

इक दिया यादों का था रौशन थी जिस से बज़्म-ए-शब
जाने क्या गुज़री कई रातों से जलता ही नहीं

ज़िंदगी भर पय-ब-पय हम ने कुरेदे अपने ज़ख़्म
हम से छुट कर उस पे क्या गुज़री ये सोचा ही नहीं

आरज़ू थी खींचते हम भी कोई अक्स-ए-हयात
क्या करें अब के लहू आँखों से टपका ही नहीं

इस तरह कैसे हो 'अजमल' चारा-ए-दिल की उम्मीद
दर्द अपना आख़िरी हद से गुज़रता ही नहीं
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