0

फ़िरऔन-ए-वक़्त कोई भी हो सर-कशी करो  - Ajmal Ajmali

फ़िरऔन-ए-वक़्त कोई भी हो सर-कशी करो
यारान-ए-शहर मेरी तरह ज़िंदगी करो

अमृत नहीं नसीब तो ज़हराब ही सही
कुछ तो इलाज-ए-शिद्दत-ए-तिश्ना-लबी करो

ये ज़ुल्मत-ए-तमाम मुसलसल नहीं क़ुबूल
दिल का लहू बला से जले रौशनी करो

मुँह देखी दोस्ती से अब उकता गया है दिल
यारो करो ख़ुलूस से गो दुश्मनी करो

हम हर-नफ़स खिलाएँगे अपने लहू से फूल
तुम एहतिमाम-ए-दार-ओ-रसन हर घड़ी करो

हर शे'र आबगीना है मौज-ए-ख़याल का
लो काम एहतियात से जब शाइ'री करो

कलियाँ खिलाने आएगा झोंका नसीम का
तुम राह में हज़ार फ़सीलें खड़ी करो

- Ajmal Ajmali

Miscellaneous Shayari

Our suggestion based on your choice

More by Ajmal Ajmali

As you were reading Shayari by Ajmal Ajmali

Similar Writers

our suggestion based on Ajmal Ajmali

Similar Moods

As you were reading Miscellaneous Shayari