Ghamgeen Dehlvi

Ghamgeen Dehlvi

@ghamgeen-dehlvi

Ghamgeen Dehlvi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ghamgeen Dehlvi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

10

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
उस की सूरत का तसव्वुर दिल में जब लाते हैं हम
ख़ुद-ब-ख़ुद अपने से हमदम आप घबराते हैं हम

होश गर रहता हो तुझ को हम से पोशीदा न रख
जब वो याँ आता है ऐ दिल तब कहाँ जाते हैं हम

बैठे बैठे क्यूँ यकायक हाए दिल खोया गया
हमदम इस का कुछ सबब ढूँडे नहीं पाते हैं हम

ख़ुद-ब-ख़ुद कल शब को वो बोले उठा मुँह से नक़ाब
जो न देखा हो किसी ने मुझ को, दिखलाते हैं हम

बे-सबब हो कर ख़फ़ा जब कुछ सुनाता है वो शोख़
जी ही जी में अपने उपर हाए झुँझलाते हैं हम

शाम को साक़ी कभी आता है गर तेरा ख़याल
सुब्ह तक भी होश में अपने नहीं आते हैं हम

हम ने ग़म क्या ख़ाक खाया ग़म ने हम को खा लिया
लोग ऐ हमदम समझते हैं कि ग़म खाते हैं हम

जाम ले कर मुझ से वो कहता है अपने मुँह को फेर
रू-ब-रू यूँ तेरे मय पीने से शरमाते हैं हम

जो कलाम-ए-इश्क़ ये हरगिज़ समझता ही नहीं
दिल को सौ सौ तरह 'ग़मगीं' हाए समझाते हैं हम
Read Full
Ghamgeen Dehlvi
न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है
उमीद-ए-वस्ल ही पर इन दिनों गुज़ारा है

न देखूँ तुझ को तो आता नहीं कुछ आह नज़र
तू मेरी पुतली का आँखों की यार तारा है

मुझे जो बाम पे शब को बुलाए है वो माह
मगर उरूज पे क्या इन दिनों सितारा है

यक़ीन जान तू वाइज़ कि दीन ओ दुनिया में
बस उस की सिर्फ़ मुझे ज़ात का सहारा है

अजब तरह से नज़र पड़ गया मिरे हमदम
क़यामत आह वो मुखड़ा भी प्यारा प्यारा है

मुझे जो दोस्ती है उस को दुश्मनी मुझ से
न इख़्तियार है उस का न मेरा चारा है

कहा जो मैं ने पिलाते हो बज़्म में सब को
मगर हमें ही नहीं क्या गुनह हमारा है

तो बोले वो कि जिसे चाहें हम पिलाएँ शराब
ख़ुशी हमारी तिरा इस में क्या इजारा है

गया वो पर्दा-नशीं जब से अपने घर 'ग़मगीं'
तमाम ख़ल्क़ से दिल को मिरे किनारा है
Read Full
Ghamgeen Dehlvi
मिरा उस के पस-ए-दीवार घर होता तो क्या होता
क़ज़ा से ऐ फ़लक गर इस क़दर होता तो क्या होता

जनाज़े पर मिरे उस शोख़ को लाया है तू आख़िर
अगर ऐ इश्क़ कुछ तुझ में असर होता तो क्या होता

हुआ बेहोश बिल्कुल आह उस की आमद आमद में
गर आने से मैं उस के बा-ख़बर होता तो क्या होता

इसी आलम में हैं ये लुत्फ़ ऐ दिल इश्क़-बाज़ी के
अगर बाग़-ए-जिनाँ में बुल-बशर होता तो क्या होता

तजल्ली तो हुई मूसा को पर मेरी तरह वाइज़
हमेशा जल्वा-गर हर इक शजर होता तो क्या होता

हुनर-मंदों को तेरे हाथ से है ज़िंदगी मुश्किल
जो तुझ में भी कोई ऐ दिल हुनर होता तो क्या होता

किया बदनाम इक आलम ने 'ग़मगीं' पाक-बाज़ी में
जो मैं तेरी तरह से बद-नज़र होता तो क्या होता
Read Full
Ghamgeen Dehlvi
मुझ से आज़ुर्दा जो उस गुल-रू को अब पाते हैं लोग
और ही रंगत से कुछ कुछ आ के फ़रमाते हैं लोग

जब से जाना बंद मेरा हो गया ऐ हमदमो
तब से उन के घर में हर हर तरह के आते हैं लोग

मेरे आह-ए-सर्द की तासीर उस के दिल में देख
हाए किस किस तरह मुझ पर उस को गर्माते हैं लोग

जब वो घबराते थे मुझ से तब थे उन के घर के ख़ुश
अब जो वो ख़ुश हैं तो उन के घर के घबराते हैं लोग

कोई समझाओ उन्हें बहर-ए-ख़ुदा ऐ मोमिनो
उस सनम के इश्क़ में जो मुझ को समझाते हैं लोग

रोज़-ए-हिज्राँ तो दिखाया सौ फ़रेबों से मुझे
देखिए अब और क्या क्या हाए दिखलाते हैं लोग

जो लगाते थे बुझाते थे हमेशा उन से आह
वो ही अब नाचार 'ग़मगीं' मुझ से शरमाते हैं लोग
Read Full
Ghamgeen Dehlvi