ज़िंदगी ख़ुद को तेरी चाहत में बेहतर कर लिया
दर्द से रख राब्ता ज़ख़्मों को रहबर कर लिया
कौन अपना कौन बेगाना कभी जाने न हम
जो मिला है प्यार से उसको ही दिलबर कर लिया
ग़म के तूफा़ँ साहिलों से जो लगे टकराने तो
छोटी छोटी हर ख़ुशी को फिर समंदर कर लिया
हो न मुमकिन कैसे हाल-ए-दिल किसी को दिखला दे
फूल से नाज़ुक से एहसासों को पत्थर कर लिया
'प्रीत' को अब फ़िक्र भी ऐसे ज़माने की नहीं
उस ख़ुदा की ही रज़ा को यूँ मुक़द्दर कर लिया
Read Full