शहवत तो है बहुत पर क्या प्यार जानते हो
पाकीज़गी कहाँ तुम अय्यार जानते हो
कहने को हूँ मैं ज़िंदा उसके बिना भी यारो
जीना हुआ है कितना दुश्वार जानते हो
ज़ुल्म-ओ-सितम से थककर ख़ुद को बदल न देना
वो जानते हैं नफ़रत तुम प्यार जानते हो
तुम हो ग़रीब या हो दुनिया में सब से ऊपर
इक खेल है जिसे तुम संसार जानते हो
क्या जानते हो क्यूँ अब ख़ामोश रह रहा हूँ
दुनिया से क्यूँ हुआ मैं बेज़ार जानते हो
कोशिश ही जब नहीं की तो ये बता दो मुझ को
क्या जीत जानते हो क्या हार जानते हो
क्या ही किया है तुम ने ये पूछते हो मुझ से
कितना लुटा था मेरा घर-बार जानते हो
लाखों दबी हैं लाशें बे-नाम आशिक़ों की
तुम इश्क़ में मरे बस दो चार जानते हो
शायद अमान हम को फिर से मिले कहीं वो
कितनी दुआएँ की हैं इस बार जानते हो
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