मैं अब महफ़ूज़ कुछ रक्खा नहीं करता
समझ लो पहले के जैसा नहीं करता
वही सफ़ है कि जिसमें रोज मरते हैं
ख़ुदा तू क्यों इसे छोटा नहीं करता
तु क्यूँ हैरान है इतना कहा तो था
मैं कुछ भी वैसे का वैसा नहीं करता
किसी का क़त्ल कर दूँ क्या तेरे गम में
जी अब ख़ामोश जीने का नहीं करता
बदल देंगे तुम्हारी शक्ल का पैकर
मनाओ शुक्र अभी पर्वा नहीं करता
तु सच कहता है मैं सिगरेट पीता हूँ
नशा मैं बाद तेरे क्या नहीं करता
सभी कितने बड़े हैं हो गए देखो
शरारत अब कोई बच्चा नहीं करता
मेरी जादूगरी को मुंतज़िर हैं सब
समंदर को मैं अब क़तरा नहीं करता
उन्हें नज़रें मिलाने तो दो फिर कहना
कोई भी हो मैं शर्माया नहीं करता
तुम्हारे साथ जीना और मरना है
मैं ऐसा कोई भी दावा नहीं करता
सही होता अगर मर जाता मैं चुपचाप
ग़ज़ल कह ख़ुद को फिर ज़िंदा नहीं करता
मुहब्बत करने वाला आम लड़का हूँ
मेरा दिल जो नहीं करता नहीं करता
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