काँटें ही काँटें बिछे हैं फ़र्श पर चादर नहीं
एक ही कमरा है लेकिन उसमें भी बिस्तर नहीं
क्या कहा मुझसे कि कोई आपसे सुंदर नहीं
सनअत-ए-क़ुदरत में कोई चीज़ भी कमतर नहीं
ज़िन्दगी में दोस्ती हमने तो की है ख़ूब ही
हैं हज़ारों दोस्त लेकिन आपसे बेहतर नहीं
यार ने भी ख़ूब खेला खेल लेकिन क्या कहें
दिल शिकस्ता करने में उसका कोई हमसर नहीं
किस भरोसे से करूँ अब आपसे उम्मीद मैं
आप तो रहजन ही निकले इश्क़ में रहबर नहीं
आप ख़ुद अपनी निगाहों में गिरे हैं क्या कहें
जब के मैंने आपको समझा कभी नौकर नहीं
ये सियासी लोग ख़ुद को क्या समझते हैं भला
इनको दुनिया में ख़ुदाई से भी कोई डर नहीं
बेच देते हैं ग़रीबों की ज़रूरत बे-झिझक
इतना ख़ुद ही बोलिए क्या आप सौदागर नहीं
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