अपनी दुनिया सँवार लेते हैं
आप को जो निहार लेते हैं
ख़ुद को करते है मुब्तिला दुख मे
और ख़ुद को पुकार लेते हैं
लोग ख़ुद को तबाह करने को
मुझसे वहशत उधार लेते हैं
कैफ़ियत मे तुझे पहनते हैं
और ख़ुद को उतार लेते हैं
उसके बिन रात तो क़यामत है
हाँ मगर दिन गुज़ार लेते हैं
आ कि अब ख़त्म कर दे ये रिश्ता
अपनी ग़लती सुधार लेते है
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