क्यों किसी से करे रंजिशें क्यों किसी से अदावत करें
जो मेरा था मेरा ना हुआ क्या किसी से शिकायत करें
खूँ के आँसू रुलाता रहा तीर दिल पर चलाता रहा
इश्क़ ने ज़ुल्म इतने किये कैसे इसकी हिमायत करें
प्यार के वास्ते ना सही एक मेरी ख़ुशी के लिए
आपसे है यही इल्तिजा बस जनाज़े पे शिरकत करें
ये भी हो सकता है छीन ले उसको ख़ुद के लिये या तो फिर
जो हुआ सो हुआ बोलकर उम्र भर हम नदामत करें
इस ज़मीं पर ही पैदा हुए इस ज़मीं पर ही मरना है अब
है ये मुमकिन नहीं हुक्मराँ के कहीं और हिजरत करें
बाद तकसीम के रात भर हम ये सजदे मे कहते रहे
ऐ ख़ुदा मेरे मेहबूब की आँसुओ से हिफ़ाज़त करें
ज़िन्दगी मे फ़क़त इतनी सी कामयाबी मुझे चाहिये
लोग दे बद्दुआ मुझको पर जब मिले मुझसे हैरत करें
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